बुधवार, 15 अप्रैल 2009

मुद्दा ये नहीं है , मुद्दा तो ये है कि..............

ये तो बिल्कुल स्वाभाविकर ही था कि अभी भी हम लोकतंत्र के उस परिपक्व ओहदे पर नहीं पहुँच पाएं जहाँ अमरीका या ऐसे ही किसी अन्य देश के समान कोई अनोखा चमत्कार कर दिखायें या विश्व को दिखा दें कि देखो ये हैं भारतीय लोकतंत्र की उपलब्धि सो इस बार भी वही सब दोहराया जायेगा जो दशकों से चला आ रहा है। हाँ ये अंदाजा भी नहीं था कि स्थिति दिनों दिन ऐसी होती चली जायेगी, हालाँकि मौजूदा परिस्थितियों में इससे बेहतर कुछ की अपेक्षा भी बेमानी ही होगी। अब तो देखना सिर्फ़ ये है कि आख़िर वो कौन सी हद है जहाँ जाकर ये सब थम जायेगा।
इन सबके बीच जो एक बात मुझे बहुत अखरती है वो ये कि चाहे हम लाख कहें, चाहे लाख योजनायें बनाएं म्मागर घोम फ़िर कर ये हमारे नेता वही पहुँच जाते हैं, क्या ये सचमुच एक मुद्दा है कि कौन सा व्यक्ति प्रधानमंत्री पद के लिए कमजोर या मजबूत साबित होगा , मुद्दा तो ये भी नहीं है कि कौन सी पार्टी कितनी बूढी है और कौन सी जवान , मुद्दा ये भी नहीं है कि कौन कितनी असभ्य भाषा का प्रयोग कर रहा है, मुद्दा ये भी नहीं है कि कौन सी पार्टी ऐसी है जो चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन नहीं कर रही है। आज एक आम आदमी के दिमाग में जो बातें घूम रही हैं वो तो शायद ये हैं कि आख़िर कौन सा ऐसा राजनितिक दल है जो अपने दम पर सबका विश्वास जीत कर बहुमत से सरकार बना सकेगा, ताकि फ़िर पाँच वर्षों तक रूठने और मानाने की कहानी न चलती रहे । मुज्दा तो ये है कि कौन सी पार्टी ऐसी है जो लोगों के बीच जाकर कह सके कि अच्छा जी हम आपके ऐ अपेक्षा पर खरे नहीं उतरे तो लीजिये छोड़ देते हैं ये राज पात। कौन सी पार्टी है जो कहती है कि हाँ हम देंगे अफजल और अन्य देशद्रोहियों को फांसी , हाँ हम लायेंगे महिला आरक्षण विधेयक और हम हैं जो ख़त्म कर देंगे ये आरक्षण की लाईलाज बीमार, हमारे पास योजनायें हैं कि कैसे हम सुदूर गाँव में बैठे व्यक्ति की जिंदगी का एक एक पहलू यहाँ बैठे तमाम नौकरशाहों को दिखला सकें ।
सबसे बड़ा मुद्दा तो ये है कि आख़िर क्यूँ आज कोई भी आम आदमी राजनेता नहीं बन सकता, आख़िर क्या है ऐसा कि अब भी देश में सिर्फ़ ४० प्रतिशत लोग मतदान करने जाते हैं बांकी के ६०न प्रतिशत इसलिए नहीं जाना चाहते क्यूंकि उन्हें लगता है कि कोई भी ऐसा नहीं है जो उनकी अप्केशा पर खरा उतर सके । आख़िर क्या वजह है लोगों, डॉक्टर्स इंजीनीयर्स, बड़े उद्योग पतियों को जगह नहीं मिल रही है । हाँ चारों तरफ़ एक अजीब सी उत्तेजना पैदा की जा रही है ताकि लोगों का ध्यान उन बातों की तरफ़ न जाए जो वास्तव में असली मुदा हैं, नहीं तो किस्में है हिम्मत कि इन सवालों का जवाब दे, और शोर मचाना तो सबसे आसान काम है। वक्त आ रहा है जब ये सब कुछ यदि एकाएक नहीं तो धीरी धीरे ही सही बदल जरूर जायेगा और उस वक्त का
सबको इन्तजार है ....................

8 टिप्‍पणियां:

  1. bilkul sahi kaha hai apki aur ham sab ki manokamna opooran ho aashaa hi jeevan hai abhaar

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  2. अजय जी आप ने बहुत अच्छा विषय उठाया है। इस पर बात होनी और आगे बढ़नी चाहिए। किसी भी ईमानदार के मस्तिष्क में ऐसी ही बातें जरूर आएँगी।

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  3. आमीन.........ईश्वर करे ये बदलाव जल्दी ही आयें.. बढिया आलेख.बधाई.

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  4. aap sabkaa dhanyavaad, sahee kaha dinesh jee is vishay aur bahas ko aage badhaanaa hee chaahiye, koshish to kee hee jaa saktee hai......

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  5. juta chl nikla hai :log n mane to yhi privrtn ka sootradhdar bnega
    prbhav chhutta hai

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  6. कारण मैंने कुछ महीने पहले ढूंढने की चेष्टा की थी - एक नजर मारिये!

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  7. aap dono kaa bahut bahbut dhanyavaad, haan anil bhai shayad karan wahee hain jo aap keh rahe hain baharhaal badlaav to lana hee padegaa. dhanyavaad.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला