सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

जो नहीं बिके , उन्हें खरीदा जाए

जो नहीं बिके , उन्हें खरीदा जाए :-

मेरे मित्र जो आई पी एल , की नीलामी पर पहले से ही बुरी निगाह डाले थे, जबकि मैं जानता था कि , क्रिकेट के देश में बचे कुछ ही दुश्मनों में से वे भी एक थे, जब पूरा दिन बैठ कर नीलामी की खबरें देखते रहे तो मेरे से नहीं रहा गया।

क्या हुआ , महाराज, आज ये क्रिकेट प्रेम कैसा, कहीं ऐसा तो नहीं कोई और ही चक्कर है, या कहीं आप ये तो नहीं समझ रहे कि इस आई पी एल की नीलामी में किसी पार्टी का टिकट भी नीलाम हो रहा है और आप जाहिर है इन उसे अगले चुनाव के लिए आजमाना चाह रहे हों। अच्छा अच्छा, ये सब कहीं हीरोइन लोगन को देखने के लिए तो नहीं था , आख़िर माजरा क्या था यार ?
अरे नहीं यार , कोई ख़ास नहीं, दरअसल मैं उन खिलाड़ियों के बारे में सोच रहा था जो बिके नहीं, मतलब किसी ने भी उन्हें नहीं खरीदा, सोच रहा हूँ कि क्यों न मैं ही उन में से कुछ को खरीद लूँ ?
मेरे अचंभित भाव वाले चेहरे को देख कर वे भी बौखला कर बोले,

क्यों यार , तुम ऐसे क्यों देख रहे हो, भाई जब मैं चालीस रुपैये, किलो टमाटर और प्याज खरीद सकता हूँ, पच्चीस रुपैये किलो चीनी खरीद सकता हूँ, जब हर महीने मैं अपने फोन में नयी नयी रिंग टोन भरवा सकता हूँ, इमरान हाशमी, सिकंदर खेर, हर्मन बवेजा की पिक्चरों की टिकट खरीद सकता हूँ और डूबने के बावजूद शेयर खरीद सकता हूँ तो फ़िर यार इन्हें क्यों नहीं खरीद सकता। हाँ हाँ, अब तुम ये पूछोगे कि मैं खरीदना क्यों चाहता हूँ। यार सच बताऊँ तो अभी तो मैंने भी नहीं सोचा है, मगर जब खरीद लूंगा तो करवा लूंगा कुछ भी। कभी मेरे बच्चों के साथ वीडीयो गेम खेल लेंगे, जिन्हें मैं बिल्कुल नहीं खेल पाता, कभी सब्जी भाजी ला दिया करेंगे, कभी मेरे साथ ताश वैगेरह खेल लिया करेंगे।
मगर ऐसा वे क्यों करेंगे भला,

अरे सब करेंगे, तुमने नहीं देखा पिछली बार तो जिंटा ने कुछ खिलाड़ियों को आधी रात को होटल से भगा दिया था, फ़िर मैं तो उनपर २० २० जीतने का कोई दबाव भी नहीं डालूँगा, और यार जब उन्हें किसी ने खरीदा ही नहीं तो फ़िर इससे अच्छा ऑफर उन्हें कहाँ मिलेगा ?

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