गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

बग,ब्लॉग,, बिलियेनेयर

मित्र जब भी मुझे चिंताग्रस्त देखते तो पता नहीं किस भावना से वशीभूत होकर , पता नहीं उन्हें कौन सा कीडा काट लेता है की, जरूर मुझसे मेरी चिंता का कारण पूछने लगते ,और इसका परिणाम ये होता की अक्सर उस चिंता से कई बार कई तरह के फ़साने और अफ़साने निकल जाते थे।

क्या हुआ, झा जी, किस चिंता में पड़े हुए हो आप। क्या ये सोच रहे हो की भारत का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा, यदि ऐसा कुछ सोच रहे हो तो छोड़ दो, अजी ये लोकतंत्र हैं, और फ़िर जबसे हरदन हल्ली देवे गुदा प्रधानमंत्री बने तभी से सबने प्रधानमंत्री के नाम का अंदाजा लगाना छोड़ diya ,और यार आप तो ऐसे सोच रहे हो जैसे आपके फैसले पर ही देश की अगली तकदीर निर्भर है।
मेरी तरफ़ से प्रतिक्रया नहीं देख कर वे फ़िर बोले, क्या बात है यार, अमा तुम्हारे सोचने से तो दुनिया के आर्थिक संकट पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ने वाला, और तुम तो बस ये सोच कर खुश होते रहा करो की चुनाव और सरकार बनने तक पैट्रोल गैस, सब सस्ते मिलेंगे।

अब मेरे बर्दाश्त से बाहर हो रहा था, नहीं भाई, मैं इन हलके मुद्दों पर अब अपना समय नहीं खर्च करता हूँ। दरअसल बात कुछ और ही है, मैं तुम्हें विस्तार से बताता हूँ। यार, बताओ अब तो सुना है की चाँद और फिजा पार भी एक ;पिक्चर बन दरही है, इससे पहले तो झुग्गी के कुत्तों पर भी एक बड़ी पिक्चर बन गयी है, बताओ यार, हम तो कुत्तों से भी गए गुजरे हो गए, कम्भाक्त कोई हमपे पिक्चर बनाए को राजी ही नहीं है, मैं तो इससे सोच में पडा हूँ।
जबकि तुम नहीं जानते क्या की हमारी हालत तो झुग्गी वालों और कुत्तों से भी बदतर है। हम तो किरायेदार हैं, झुग्गी वाले तो फ़िर भी मालिक हैं। और रही कुत्तों की बात तो तुम्हें क्या बताएं अक्सर अपनी हालत कुत्तों जैसी ही रहती है।
बल्कि मैं तो पहले भी सोच रहा था की राम गोपाल जी अपने शोले के पीटने के बाद जरूर ही हम पर कुछ बनायेंगे, मगर निराश होने के बाद अब तो किसी बोल्लीवुद के डाईरेक्टर से ही मिलने का इरादा है,
पिक्चर का नाम होगा, बग , ब्लॉग, बिलीयेनायर

आएँ , ये कैसी पिक्चर है भाई, मेरी तो कुछ समझ में नहीं आया।

देखो यार अब मेरा मुंह मत खुलवाओ, स्लम डॉग मिलियेनेयर में ही कौन सा किसके साथ सम्बन्ध है जरा यही बताओ। खैर, सुनो बग यानि, कीडा, वो तो हम हैं ही, कम से कम अपनी पत्नी की नजरों में तो हम किताबी कीडे हैं ही, ब्लॉग भी अपना है ही, अबे इसमें भी शक है क्या, और रही बिलियेनायर की बात तो उससे सीधे सीधे तो हम नहीं जुड़े हैं मगर इसे यूँ समझ लो की जो पैसे हम पागलों की तरह मोबाईल पर और तरह तरह की रिंग टन पर खर्च करते हैं, एस ऍम एस करते हैं आख़िर उन्ही पैसों से तो नोकिया और ऐर्तेल के मालिक अरबपति बन जाते हैं।

तो इन्तजार करो एक न एक दिन बग ब्लॉग बिलियेनेयर को भी ऑस्कर का नामांकन मिल ही जायेगा.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला