गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

मंजर , यही हर बार रहता है .

माहौल कुछ ऐसा है,
या कि, अपनी,
आदत बन गयी है ये,
अब तो,
हर घड़ी,
इक नए दाह्से का,
इन्तजार रहता है,
हकीकत है ये,
कि बेदिली की इंतहा,
देखते हैं, पहला,
दूसरा पहले से,
तैयार रहता है,

घटना- दुर्घटना ,
हादसे-धमाके,
प्रतिरोध-गतिरोध,
बिलखते लोग,
चीखता मीडिया,
बेबस सरकार,
आंखों में मंजर यही,
हर बार रहता है........

हाँ, शायद आज यही हमारी हकीकत बन चुकी है , कि एक के बाद एक नयी नयी घटनाएं, सामने आती जाती हैं, पिछली हम भूलते जाते हैं, और अगले का इंतज़ार करते हैं, यदि दूसरों पर बीती तो ख़बर, अपने पर बीती तो दर्द....

3 टिप्‍पणियां:

  1. घटना- दुर्घटना ,
    हादसे-धमाके,
    प्रतिरोध-गतिरोध,
    बिलखते लोग,
    चीखता मीडिया,
    बेबस सरकार,
    आंखों में मंजर यही,
    हर बार रहता है........

    ek bahtreen rachna...

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  2. aap dono kaa dhanyavaad, padhne aur saraahne ke liye.

    जवाब देंहटाएं

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला