मंगलवार, 21 अक्तूबर 2008

मनसे यानि, मनोरोगियों की नक्सलवादी सेना

इन दिनों आ सी एल की ख़बरों की जितनी ही दुर्दशा हो रही है उतनी ही ज्यादा चर्चा अपने मनसे की हो रहे है और फ़िर हो भी क्यों न जितनी तेज़ गति से वे रोज कोई न कोई रोमांचक मैच खेल रहे हैं तो जाहिर है की उनकी ही चर्चा ज्यादा होनी चाहिए। हाल ही में इस खाकसार को उनका सामना करने का मौका मिला, (यहाँ ये स्पष्ट कर दूँ की ये साक्छात्कार उनके कारागार प्रवास से पहले का है, इसलिए शक न करें )

सर, आपकी ये जो मनसे नामक टीम है, इस पर कई गंभीर आरोप लग रहे हैं, पहला तो यही है कि, आप मनसे नहीं हैं आप लोग असल में तनसे हैं, मतलब आप लोग सारे काम तनसे, विशेष कर हाथ और लात से ही ज्यादा करते हैं, और मन की कौन कहे जो बोले बैगैर भी काम चल सकता है आप उसमें भी अपनी जुबान का काम लेते हैं तो कैसे हुए आप मनसे,
उन्होंने घूर कर देखा , और इशारा किया कि आगे बढो।
साडी कहा जा रहा है कि आपकी सेना का पूरा नाम तो मनोरोगियों की नक्सलवादी सेना होना चाहिए, काम तो आपके उनके जैसे ही हैं, और फ़िर कहे का पुनर्निर्माण, क्या निर्माण ऐसे होता है ।
बिल्कुल, आपने इतिहास नहीं पढा , किसी भी निर्माण से पहले उसका विध्वंस होना जरूरी होता है । देखो दिल्ली सात बार बसने से पहले उतनी ही बार उजड़ी भी थी न , अबकी बार मैंने घूर कर देखा, नहीं शर्मा कर।

सर सुना है आप हमेशा ही धमकी देते रहते हैं कभी किसी को कभी किसी को, असर वासर तो होता नहीं है कुछ।
क्या कहा असर नहीं होता , किसने कहा आपसे , अजी हमने रातों रात मुंबई के सारे पोस्टर्स, दुकानों के नाम, होटलों के नाम सब कुछ मराठी में करवा दिया,और बोल्लीवुद के कौन कहे, अपने सरकार देखी थी, उसके बाद जो रामू ने सरकार राज बनायी थी, वो किसके लिए थी, और किसे खुश करने के लिए थे, आप सरकार में राज के बाद भी नहीं समझे ।

सर हाल में बिहार , यु पी , से बेचारे गरीब छात्र यहाँ परिक्षा देने आए थे, उनके साथ भी आप लोगों ने मारपीट की, कई तो उनमें से ऐसे थे जो मराठी जानते भी थे, फ़िर भी.....

क्या मराठी जानते थे, सब झूठ, जब सर पे डंडा पडा सारा झूठ निकल गया, वे चीख तो हिन्दी में रहे थे ।

सर , भविष्य के लिए आपकी और क्या क्रांतिकारी योजनायें हैं ?

पहले तो में सरकार से मांग करने जा रहा हूँ कि जब सबके लिए इस पे कमीसन में बात हुई, सेना के लिए तो अलग से हुई तो हमारी सेना के लिए कुछ क्यों नहीं सोचा गया, जल्दी ही राष्ट्र्यव्यपी, नहीं महाराष्ट्रव्यापी आन्दोलन होगा। हम फैसला लेने जा रहे हैं कि जितने भी बड़े बड़े कलाकार हैं सबको अपना सरनेम महाराष्ट्रियन ही लगाना होगा, जैसे, शाहरुख पाटिल, आमिर राणे, अमिताभ गायकवाड, सलमान पवार, कैटरीना मातोंडकर अदि , और भी कई योजनायें हैं, आप देखते रहे।
मगर सर सुना है कि आप दोनों परिवारों के बीच कुछ अनबन चल रहे है, जैसे उन्होंने कहा कि सब कुछ उनके
पिता महाराज का है .
अजी छोडो छोडो मजाक है क्या, उनके कहने से क्या होता है, उनका तो तभी पता चल गया था , वैसे तो कहते थे कि मैं ये हूँ वो हूँ और , जब माईकल जैकसन आया तो कहने लगे कि , मुझे फक्र है कि माईकल जैकसन जैसे कलाकार ने मेरा टॉयलेट उप्यूग किया, बताइए तो ये कोई बात हुई।
अच्छा आप अब जाईये मुझे मनसे के बारे में पूरे मन से सोचना है।
मैं भी मन ही मन सोचते चला गया.

4 टिप्‍पणियां:

  1. राज जो भी कर रहा है, यह उसकी मजबूरी है। अगर इसी तरह उत्तर प्रदेश-बिहार से लोग महाराष्ट्रा में आते रहे, तो मराठी लोग कहा जायेंगे? हर चिज की कोई हद होती है।
    युपी एवं बिहार के नाकारा नेता, जो अपने राज्य में रोजगार की उपलब्धीया करानें में नाकाम रहे है, वह अपनी इस नाकाबीलीयत कें बारे में तो कुछ भी नही कह रहे, और राज पर भद्दे इल्जाम लगा रहे है।
    जो लालू राज को ’पागल’ करार दे रहा है। वह खुद तो एक नंबर का चोर है।
    इतिहास गवाह है की जब भी हिंदूस्तान पर कोई ऑंच आई है, मराठो ने इस देश के लिये अपना योगदान दिया है। और हम आगे भी देते रहेंगे। मगर हमारी भाषा, संस्कृती और हमारे रोजगारो के बारे में हम कोई समझोता नही कर सकते।
    जय महाराष्ट्र!

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  2. bilkul sahee kaha aapne magar ek baat shayad aap bhool rahe hain ki har bat kehne karne ke do tareeke hote hain ek sakaaraatmak doosraa nakaaraatmak aur fir aap angrez raaj mein nahin jee rahe hain, kya aaj saare maraathaa sirf maharashtra mein hee hain ?

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  3. bhashaa apne sath sanskruti bhi le jaati hai.
    angrej aaye angreji chhod gaye aur ab convent sanskruti ki peeda ke baare me ham chillaa rahe hai
    sthaneey sanskruti kaa hraas ho rahaa hai
    aap jo chahe kahen
    bhookh aur garibi ke sath rojgaar duniyaa bhar me uplabdh hai fir videshon main paisaa bhi adhik hai apni sankruti ko vahaan failaane ke liye aage badhen

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला