गुरुवार, 31 जुलाई 2008

मन किया तो लिख डाला, मन करे तो पढ़ लेना

कई अलग अलग कारणों से पिछले कुछ दिनों से अपना ये पसंदीदा काम नहीं कर पाया था, और पिछले ही कुछ दिनों में कई सारी घटनाएं-दुर्घटनाएं एक साथ घटती चली गयी। जिन्हें जब मैंने बैठ कर एक साथ सोचा तो ये सारी बातें निकल कर सामने आयी :-

एक करोड़ का बैग :- संसद में अभी अभी हमारे माननीय सांसदों द्वारा एक करोड़ की नोटों की गद्दियाँ उछालने को बिल्कुल ग़लत दृष्टिकोण से देखा और दिखाया गया।

समाज और समाज सेवक के बीच पूर्ण पारदर्शिता का ये प्रत्यक्ष प्रमाण था।
इसी घटना से एक आम आदमी को पता चला की यदि सौ सौ की गद्दियों का एक करोड़ हो तो कुल वज़न उन्नीस किलो होता है, वरना एक आम आदमी तो गुल्लक में जमा सिक्कों के वज़न से ही ख़ुद को कृतार्थ कर लेता है।
इसी गटना से पहली बार आम लोगों को किसी भी संसद सत्र में, सस्पेंस, थ्रिल और कोमेडी का पूरा मज़ा मिला, वरना तो ये सत्र वैगेरा बिल्कुल बोरिंग ही होते थे।
घटना ने दिखा दिया , की दुनिया वालों, यदि तुम समझ रहे हो की इस देश में सिर्फ़ गरीबी, भुखमरी , अशिख्सा है, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, लोग कुपोषण और बीमारी से मर रहे हैं, तो आँखें पसार कर देख लो हमारे सेवक जन करोड़ों के गड्डी बना कर खुलेआम कैच कैच खेल रहे हैं।

बंगलुरु और गुजरात में बम विस्फोट :-

सब कुछ एक तय शुदा कार्यक्रम है भाई।
आतंकियों का काम, पहले जगह तलाशो, जहाँ खूब भीडभाड हो , भारत में ये कौन मुश्किल काम है, फ़िर मजे से बम लगाओ और फोड़ दो।
पुलिस का काम, फ़टाफ़ट जांच शुरू, ई मेल , फी मेल पकड़े, संदिग्धों की धड पकड़ की, और अपनी पीठ थोक ली।
सरकार और हमारे मंत्रियों का काम, पहुंचे , बम विस्फोट की निंदा की, मुआवजे की घोषणा की, और चलते बने।
आम आदमी का काम, बम फटा, मरे, घायल हुए तो टी वी अखबार में फोटो छपी, मंत्रियों ने सांत्वना दी, मुवाजे का लोलीपोप दिखाया, और फ़िर सब , सब कुछ भूल कर बैठ गए,
किसी अगले बम विस्फोट की प्रतीक्षा में..............................

सीना फुलाए जाओ, सर झुकाए आओ।

ये लीजिये, अभी हमारा ५७ सदस्यों वाला दल ओलम्पिक में भाग लेने निकला ही था की उनकी सफलता-विफलता की चिंता होने लगी। पदकों का हिसाब किताब चल रहा है, और हमारे मंत्री अधिकारी अपने विचार और बयान दे रहे हैं। भविष्य में ओलम्पिक का कितना सोना चांदी भारत में चमकेगा ये तो पता नहीं मगर फिलहाल के स्थिति में एक आम भारतीय समझ नहीं पा रहा है की हँसे या रोये। कोई नसीहत दे रहा है की किसी चमत्कार या पदक की कोई उम्मीद नहीं लगाना भैया, कोई कह रहा है की चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाए कम से कम आठ पदक तो अपने हैं ही। सवा अरब की जनसंख्या में सिर्फ़ पचास पचपन खिलाड़ी , जीते तो आठ, नहीं तो हमेशा की तरह सीना फुलाए जाओ, सर झुकाए आओ की नीती सफल रहेगी। तो फ़िर यार, सिर्फ़ छप्पन लोग क्यों छप्पन हज़ार या छप्पन लाख क्यों नहीं, कम से कम ओलम्पिक के दौरान ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी भारतीय ही दिखाई देंगे।

इश्मीत का जाना:-

यार, कौन कहता है कि, भगवान् से अन्याय नहीं होता , एक उदाहरण तो सामने है ही।
कोई अपनी मेहनत और किस्मत से सिर्फ़ इतनी सी उम्र में इतनी ऊचाईयों तक पहुंचा और फ़िर अचानक ही मौत की गहराई में चला गया।
मेरे तरह बहुत से लोग ऐसे होंगे जिन्होंने इश्मीत सिंग को सिर्फ़ टी वी में ही देखा होगा, और शायद मेरी तरह ही कभी वोट भी नहीं किया हो, मगर दुःख , बेहद दुःख तो उसे भी मेरी तरह ही हुआ होगा।
एक नहीं भूल सकने वाली कहानी, एक फ़साना, इश्मीत का जाना, अफ़सोस , अफ़सोस, अफ़सोस।

आज इतना ही..........

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपने लिखा और मैंने पढ़ा. सटीक और सार्थक. इश्मीत की अल्पायु में मौत अत्यन्त दुखद है. हम अल्पमति कैसे जान सकते हैं ईश्वर का न्याय कैसे होता है?

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  2. यही जीवन है मेरे दोस्त जिन्हे चले जाना चाहिये वो यही रहते है जिन्हे रहना चाहिये वो चले जाते है , यही वो बात है जिस पर कोई उपर भी है का एहसास होता रहता है .

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  3. इश्मीत की मौत ने सच में सभी को दहला कर रख दिया है।ऊपर वाले के मन में क्या है यह तो वही जानता है।

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  4. सही कहते हैं आप। सिर्फ दुखद समाचार ही मिलते रहे पूरे सप्ताह। एक भी राहत देनेवाली बात नहीं हुई।

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  5. सही कहते हैं आप। सिर्फ दुखद समाचार ही मिलते रहे पूरे सप्ताह। एक भी राहत देनेवाली बात नहीं हुई।

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  6. ..और मन किया है तो टिप्पणी छोडे जा रहा हूं।

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  7. aap sabka bahut bahut dhanyavaad, samay nikaal kar padhne ke liye aur pratikriya dene ke liye bhee.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला