होगा कई,
शहरों -कस्बों ,
मैदानों-सड़कों,
का मालिक,
फ़िर भी,
चला वो,
सड़क किनारे,
नहीं बीच में,
चलते देखा॥
कहते होंगे,
उसे सभी , वो,
है बड़े,
दिल का मालिक,
पर वो तो,
हाथ मिलाता सबसे,
कभी किसी से,
नहीं गले मिलते देखा॥
मुझको लगता था,
मैं ऐसा हूँ,
दोस्तों से भी,
चिढ जाता हूँ,
पर उसको भी,
अक्सर,
यारों की,
कामयाबी पर,
जलते देखा॥
सूखी ही सही,
रोटी ही सही,
पर माँ , मुझको,
ख़ुद देती है,
उसके बच्चों ,
को तो ,
आया के हाथों,
पलते देखा॥
मुझको लगा की,
कमजोरी ने,
मुझको बूढा बना दिया,
देखा तो,
कुछ,
झुर्रियां ही,
थोड़ी कम थी,
उम्र के उस मोड़ पर,
उसको भी,
ढलते देखा॥
अमा, काहे के अमीर हो यार, ?
सुंदर ख्याल सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता सुंदर ख्याल.
जवाब देंहटाएंbhut acchi kavita.likhate rhe.
जवाब देंहटाएंकविता ही तो है मगर बेहतरीन वाली. :)
जवाब देंहटाएंअंतिम पंक्ति में कविता मुकम्मल होती है, वाह!!
जवाब देंहटाएं***राजीव रंजन प्रसाद
www.rajeevnhpc.blogspot.com
aap sabko pasand aayee kavita , jaankar achha laga. dhanyavaad.
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