शनिवार, 7 जून 2008

कुछ पंक्तियाँ या पता नहीं कुछ और

हुआ जो ,
हादसा,
मेरे साथ,
जमाने भर ,
के लिए,
वो बस,
एक ख़बर थी॥

मैं तो,
सतर्क था,
और ,
सचेत भी,
मगर जिसने ,
हमें रखा,
अपनी ठोकरों पर,
शायद उसकी ही,
कहीं और ,
नज़र थी॥

मैंने छोड़ दिए,
कई रास्ते,
और कई,
मंजिलें भी,
जिसके लिए,
वो तो,
पहले ही,
किसी और की,
हमसफर थी॥

मैं ढूँढ ,
रहा था,
अपनी किस्मत को,
आकाश की,
बुलंदियों पर,
पाया तो ,
गर्दिशों में,
दर बदर थी॥

इक छटपटाहट,
सी थी,
जीवन चक्र
को चूमने की,
जब छुआ ,
तो जाना,
ये झील ।
में घूमती,
भंवर थी...

3 टिप्‍पणियां:

  1. जब छुआ ,
    तो जाना,
    ये झील ।
    में घूमती,
    भंवर थी
    bahut achche....

    जवाब देंहटाएं
  2. इक छटपटाहट,
    सी थी,
    जीवन चक्र
    को चूमने की,
    जब छुआ ,
    तो जाना,
    ये झील ।
    में घूमती,
    भंवर थी...


    --बहुत खूब. लिखते रहो.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला