शुक्रवार, 6 जून 2008

नकारात्मक चीज़ें ज्यादा आकर्षित करती हैं .

क्या आपको बहुत पहले दिखाया जाने वाला एक विज्ञापन याद है। उस विज्ञापन में एक नन्ही से बच्ची , स्कूल की पास से आने जाने वालों को एक पम्फ्लेट पक्दाती है, जैसे कि अक्सर ही लाल बत्ती पर आपको हमें भी कोई न कोई पम्फ्लेट पकडा देता है, और जैसा कि अक्सर ही होता है कि हम सभी उस पर एक उड़ती हुई निगाह डालते हैं और फेंक देते हैं, ठीक उसी तरह उस बच्ची द्वारा दिए गए कागज़ के टुकड़े को सभी आने जाने वाले हाथ में लेकर थोडा आगे जाने पर फेंक देते हैं। एक स्कूटर चालक जो ये सब देख रहा होता है , वो बच्ची के पास आता है और उसे बताता है कि अब उसे ये पम्फ्लेट किसी के भी हाथ में देने से पहले उसे अच्छे तरह मरोड़ कर देना है। वो नन्ही बच्ची ऐसा ही करती है, फ़िर जिस पहले आदमी को वो ये कागज़ तोड़ मडोदकर देती है , वो पहले उस बच्ची को गौर से देखता है फ़िर उसे कगाज़ के टुकड़े को खोल कर पढने लगता है।

मुझे लगता है कि इंसान का मनोविज्ञान , चाहे उत्सुकता के कारण या फ़िर कि खुराफाती कारणों से अक्सर या ज्यादातर नकारात्मक चीजों की तरफ़ आसानी से आकर्षित होता है। बल्कि ये कहूं कि कि सकारात्मक बातों , चीजों की तरफ़ चाहे एक बार को उसकी नज़र ना जाए या जाए भी तो वो उसे नज़र अंदाज़ कर दे मगर उल्टी भाषा , उल्टी बातों और उल्टी चीजों की तरफ़ उतनी ही जल्दी आकर्षित हो जाता है। किसी बच्चे को आप किसी बात के लिए मन कीजिये तो मैं ये तो नहीं कहता कि शत प्रतिशत , मगर आम तौर पर ज्यादा बच्चे वही काम करने में दिलचस्पी दिखाएँगे। एक और उदाहरण देता हूँ, किसी ने अपने चिट्ठे पर अपने पोस्ट का शीर्षक दिया, इसे बिल्कुल मत पढ़ना, आपन माने या ना मने , मगर उस दिन जितने लोगों ने उसे पढा था उससे पहले उसके पोस्ट को कभी भी इतने लोगों ने नहीं पढा था।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ नकारात्मक बातें ही मन को और मस्तिष्क को आकर्षित करती हैं मगर कुछ तो कनेक्शन जरूर है इन बातों में, या पता नहीं कि ऐसा सिर्फ़ मेरे साथ होता है..................

4 टिप्‍पणियां:

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला