अभी कुछ दिनों पहले ही मैंने आपको अपने दूसरे चिट्ठे में मित्र बैजू कानूनगो की कलम से निकली हुई रचना पढ़वाई थी , आज फिर एक बार उन्ही के कलम से कुछ और प्रस्तुत है :-
जब भी मुझको याद करोगे,
आंसुओं का अनुवाद करोगे॥
मेरा घर बरबाद किया तो,
किसका घर आबाद करोगे॥
इतनी फ़ैली हैं अफवाहें,
किस किस का प्रतिवाद करोगे॥
औलादों का सुख समझोगे,
पैदा जब औलाद करोगे॥
जो होना है, हो जाने दो,
कब तक वाद-विवाद करोगे॥
जीवन जीने की तैयारी,
क्या मर जाने के बाद करोगे॥
तुम को भूल गया जो, बैजू,
क्या तुम उसको याद करोगे....
वाह जी, क्या बात है बैजू जी की. हर शेर बेहतरीन है. बधाई दें उन्हे हमारी.
जवाब देंहटाएंजब भी मुझको याद करोगे,
जवाब देंहटाएंआंसुओं का अनुवाद करोगे॥
" bhut sunder rachna"