बुधवार, 21 मई 2008

कुछ गज़लें

मित्र बैजू कानूनगो की कलम से निकली कुछ और गजलें आपके सामने रख रहा हूँ,:-

एक विचार उठा है मन में,
क्यों न रहूँ अब vरिन्दावन में॥

सापों ने खुशबू पी डाली,
क्या रखा है अब चंदन में॥

सारे जंगल काट दिए हैं,
राम कहाँ जायेंगे वन में॥

सरकारें कैसे चल पाती,
गाँठ नहीं थी गठबंधन में॥

झूठी तारीफों से ज्यादा,
क्या लिखोगे अभिनन्दन में॥

पचपनमें करने का मन है,
जो करता था में बचपन में॥

अख्खारपन में गीत लिखे थे,
गजलें लिख्खी फक्कड़पन में..

4 टिप्‍पणियां:

  1. अख्खारपन में गीत लिखे थे,
    गजलें लिख्खी फक्कड़पन में..

    bahut badhiya.

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  2. बहुत बढ़िया-बैजू जी को बधाई कहें. आपका आभार.

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  3. सापों ने खुशबू पी डाली,
    क्या रखा है अब चंदन में॥

    सरकारें कैसे चल पाती,
    गाँठ नहीं थी गठबंधन में॥

    अख्खारपन में गीत लिखे थे,
    गजलें लिख्खी फक्कड़पन में..

    वाह!!!

    ***राजीव रंजन प्रसाद

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला