गुरुवार, 8 मई 2008

बदल रहे हैं गाँव घर

यूं टू साल में दो बार गाँव जाने की कोशिश जरूर रहती है और यदि किसी कारणवश न जा पाऊँ टू एक कसक सी रह जाती है मन में। शहर में आकर घर, परिवार, नौकरी, बच्चों के बीच अब वैसी स्वतन्त्रता या कहूं की मुक्त अवसर टू नहीं मिल पाटा है मगर जब भी किसी खुशी या गम में जाने का mओका मिलता है मैं उसे नहीं छोड़ता। दिल्ली से घर तक की लंबे रेल यात्रा के बारे में तो सिर्फ़ इतना ही कहना काफी होगा की माननीय रेल मंत्री के इतने मुनाफे और पता नहीं क्या-क्या घोषणा के बावजूद अब भी रेल यात्रा बेहद कष्टदायक है। सुकून इतना है की अब रेल सेवा सीधी मेरे गृह जिले तक की हो गयी है।

वहाँ पहुंचा तो जो देखा उससे आश्चर्य तो नहीं कह सकता हाँ सुखद अनुभूति जरूर हुई। जिन सड़कों पर पिछले पचास वर्षों में कभी काम नहीं हुआ वहाँ जोर-शोर से कार्य चल रहा है। बिजली के खंभे , तथा मीटर आदि लगाने का काम भी हो रहा है। दो पहिया, चार पहिया वाहनों की आवाजाही भी बढ़ गयी है। मुझे ये सब देखकर अच्छा लगा की चलो अब ही सही सब कुछ बदल तो रहा है। मगर यकीन मानिए मेरी ये खुशी ज्यादा देर तक मेरे साथ नहीं रही।

गाँव में लोगों के नाम पर सिर्फ़ बुजुर्ग और इक्का -दुक्का बच्चे नज़र आ रहे थे। पता चल कि अब सभी घरों का लगभग एक सा हाल है सरे बड़े बच्चे घर छोड़ कर शहरों में जा बसे हैं , कभी मौका मिल जाता है या कि कोई मजबूरी होती है तो आ जाते हैं अन्यथा पोरा गाँव इसी तरह रौनक्वीहीन रहता है। और ऐसा नहीं कि ये सिर्फ़ मेरे गाँव की कहानी है आज हर गाँव इसी तरह सुनसान पडा है। साप्ताहिक बाज़ार जिसे हम लोग हाट या हटिया के नाम से बुलाते हैं वहाँ भी ऐसी ही स्थिति थी। मैं मन ही मन सोचने लगा कि क्या ये बदलाव हमारे और हमारे जैसे सभी लोगों को या कि हमारे बाद आने वाली नस्लों को गाँव में रहने के लिए प्रेरित कर सकेंगे। मगर मुझे लगा कि जब तक रोजगार का कोई स्थायी इंतजाम नहीं हो पाएगा, और कि उद्योग धंधों का विकास नहीं होगा तब तक गाँव की हरियाली और रौनक दोबारा नहीं लौट पायेगी शायद. और मुझे उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा.

3 टिप्‍पणियां:

  1. Nice Post !
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  2. इस पलायनवाद को रोकने के लिए बहुत परिवर्तन की आवश्यक्ता है. निकट भविष्य में तो संभावना नजर नहीं आती.


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    आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.

    एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.

    शुभकामनाऐं.

    -समीर लाल
    (उड़न तश्तरी)

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  3. aap dono kaa dhanyavaad. aur udantashtri jee aapkee aagya sar aankhon par jaldee hee is par kaam shuru karungaa.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला