मंगलवार, 4 मार्च 2008

बैन करने वालों , बंधुओं यहाँ ध्यान दो न.

हमारी संस्कृति में बैन करने कराने की परम्परा कितनी पुरानी है ये तो मुझे नहीं पता और यदि अंदाजे से कुछ कहूं भी तो इस बात की पूरी संभावना है कि , कहीं मुझे ही बैन न कर दिया जाए। खैर , तो मैं कह रहा था कि ये परम्परा काफी पहले से चली आ रही है मगर इन दिनों मोबाईल, या कहें कि टैलेंट शो, या कहें कि वलेंताईं डे , या फिर कहें कि ऑस्ट्रेलिया द्वारा भारतीय खिलाडियों पर नस्लभेद कि त्तिप्प्न्नी आदि का चलन जिस प्रकार बढ़ गया है उसी प्रकार बैन करने का चलन भी बढ़ गया है। अजी ताजा ताजा दो उदाहरण तो हम आपके सामने रख ही सकते हैं । देखिये अभी हाल ही में रिलीज़ हुई पिक्चर जोधा अकबर को कई जगह बैन कर दिया गया और अभी भी किया जा रहा हैं ये अलग बात है कि इससे अकबर इतना फमोउस हो गया है जितना तो वो इतिहास की किताब से भी नहीं हो पाया था। दूसरा उदाहर तो अपने ब्लॉग जगत का ही है । पिछले दिनों जो मल्ल युद्ध यहाँ लड़ा गया उसमें भी ये बैन करने और कराने की बात खूब जोर शोर से उछली थी। बहुत से उत्साही चिट्ठाकार मित्र लोग इसी प्रकार से बैन बैन खेल रहे थे जैसे मुम्बई के bहाई लोग मुम्बई पुलिस के साथ ताड़ी पार ताड़ी पार खेलते हैं। मैं तो उससे अलग यहाँ उन सभी बैन प्रेमियों के लिए कुछ निवेदन ले कर आया हूँ।:-

पहला आप सभी लोग इन टीवी सीरीयाल्स को बैन कर दीजिये , मगर प्लीज़ प्लीज़ ये बात मेरे घर और मेरी घर की महिलाओं तक ना पहुंचे कि ये मांग मेरी तरफ़ से उठाई गयी है।

उन चिट्ठाकारों को भी बैन कर दिजीये जो यार लिखते तो हैं मगर सिर्फ़ अपनी पोस्ट , अब आप ही बताइये क्या त्तिप्प्न्नी करने के लिए भाडे पर लोग ले कर आयें।

ये कार बनाने वाली कंपनियों को बैन कर दिजीये , खासकर सस्ती कार बनाने वालों को तो जरूर ही, बताओ यार अभी घर की टेंसन ख़त्म नहीं हुई है ऊपर से कार की फरमाईश शुरू हो गयी।

चलिए फिलहाल तो जल्दी में हूँ लिस्ट लम्बी है , आगे और बताता हूँ..............


लघुकथा सफ़ेद चेहरे जल्दी ही लिखूंगा ....

6 टिप्‍पणियां:

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला