बुधवार, 27 फ़रवरी 2008

खुद को इक दिन इंसान बना लूंगा (कविता)

कोशिश मेरी,
जारी है,
इक दिन ,
मैं खुद को,
इंसान बना लूंगा॥

जब्त कर लूंगा ,
सारा गुस्सा ,
और नफरत भी,
भीतर ही अपने,
अभिमान दबा दूंगा॥

तुम रख लेना,
मेरे हिस्से की,
खुशी का,
कतरा-कतरा,
तुम्हारे सारे,
ग़मों को अपना,
मेहमान बना लूंगा॥

उखड जायेंगे,
सियासत्दाओनोन् के,
महल और,
मनसूबे भी,
बेबसों की,
आहों को वो,
तूफान बना दूंगा॥

तुम दरो न,
की कहीं ,
मेरे हमनाम,
बन कर,
बदनाम ना हो जाओ,
जब कहोगे,
खुद को, तुमसे,
अनजान बना लूंगा॥

बेशक मुझे,
बड़े नामों में,
कभी गिना ना जाए,
बहुत छोटी ही सही,
मगर अपनी,
पहचान बना लूंगा।

कोशिश जारी है और आगे भी रहेगी...

9 टिप्‍पणियां:

  1. एक अच्छी कविता । लगे रहो पहचान बन ही जायेगी

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  2. जब कोशिश कामयाब हो जाए तो हमें भी बताइएगा। हम भी आजमाएंगे आप का नुस्खा। कविता अच्छी लगी। Word Verification हटाएं। तो टिप्पणी करने वालों को सुविधा होगी।

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  3. बहुत बढिया कविता है।बहुत अच्छा लिखा है-

    बेशक मुझे,
    बड़े नामों में,
    कभी गिना ना जाए,
    बहुत छोटी ही सही,
    मगर अपनी,
    पहचान बना लूंगा।

    जवाब देंहटाएं
  4. waah ... bahut kathin nahi nahi ye koshish...mai bhi lagi hu.n ummid hai jaldi hai ham sab safal ho.nge ek achchhi duniya banane me

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  5. बहुत बढ़िया ।
    घुघूती बासूती

    जवाब देंहटाएं
  6. तुम दरो न,
    की कहीं ,
    मेरे हमनाम,
    बन कर,
    बदनाम ना हो जाओ,
    जब कहोगे,
    खुद को, तुमसे,
    अनजान बना लूंगा॥

    सुन्दर रचना। मात्रा की व वर्णों की अशुद्धियां दूर करिये.

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  7. अच्छी कविता !
    और ख़ुद को पहचानने की कोशिश अच्छी लगी।

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  8. aap sab logon kaa dhanyavaad. darasal aap sab log hee itne achha hain ki aapko insaan banne waalee baat achhe lagee. haan, word verification hataane waalee baat ke liye ye bataayein ki kaise hataa saktaa hoon aur anuradha jee , kya karoon ye blogger kaa translation kabhee kabhee dhokhaa de jaataa hai.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला