गुरुवार, 17 जनवरी 2008

एक्सपो hai या एक्सपोज

इन दिनों राजधानी में चल रहे ऑटो एक्सपो की खूब चर्चा हो रही है । क्यों ना हो भाई आख़िर इस बार सालों से प्रतीक्षित टाटा की लाख्ताकिया कर नानो जो बाज़ार में उतर गयी है । ऐसा लग रहा कि अब तो राजधानी से लेकर मेरे गाँव के ढोलू चरवाहे तक के पास ये कार दिखाई देगी । खैर ये तो पता नहीं कब होगा और जब होगा तब होगा मगर इस बार जिस एक बात से मुझे थोडी निराशा हुई वो है मोदेल्स की चर्चा।

जी नहीं आप नहीं समझे , मैं गाड़ियों या कारों के मॉडल की चर्चा की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं उन मॉडल की बात कर रहा हूँ जिन्हें पता नहीं किन कारणों से उन गाड़ियों के आसपास कम से कम कपडों में खडा कर दिया जाता है । उन नयी गाड़ियों के या पुरानी भी गाड़ियों के मोदेल्स के साथ उन युवतियों को खडे करने के पीछे का अजीब सा समीकरण मुझे आज तक नहीं समझ आया। हाँ हाँ पता है आप में से कुछ लोग यही सोचेंगे कि जब आजकल शेविंग करें के साथ युवतियों का चित्र और उनकी छवि रहना अनिवार्य है तो सिर्फ कारों के साथ उनके खडे होने पर इस तरह की बातें क्यों।

भाई साहब दरअसल इसमें भी दो बातें हैं । पहली ये कि जहाँ तक शेविंग करें में युवतियों की मौजूदगी की बात है तो वो तो विज्ञापन की चकमक दुनिया है और फिर टी वी सिनेमा पर कौन सा हमारा जोर चलता है । मगर यदि इस तरह मेला लगा कर खुलम खुल्ला कारों के बहाने मॉडल को और मॉडल के बहाने कारों को देखा और दिखाया जाएगा तो फिर वही होगा। अभी परसों ही तो ऑटो एक्सपो देखने के लिए लाखों की भीड़ पहुंच गयी थी जिसमें मेरे पड़ोस के सुलतान चाचा का बेटा राधे और नाथू काका का लाडला बंटी भी था जिन्होंने कार तो दूर कभी बाईक को भी हाथ नहीं लगाया था।

मैं जानता हूँ कि बहुत से लोगों खासकर महिला जागरण और उठान ,समानता की बड़ी बड़ी बातें करने वाली हमारी नारी जगत की शक्तिशाली महिलाओं को मेरी ये बात शायद नागवार गुजरे मगर मैं क्या करूं मुझे जब तक कोई ये नहीं समझायेगा कि आख़िर खुद को एक उत्पाद कि तरह पेश करने वाली महिलाओं और युवतियों को कोइ क्यों कुछ नहीं कहता तब तक मैं माफी चाहूँगा मगर ये पुरुश्वादी दृष्टिकोण वाली दलील बिल्कुल नहीं मानूँगा।

वैसे चाहे तो आप भी जाकर नैनो के दर्शन कर सकते हैं या नैनो से दर्शन कर सकते हैं.

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ........ सही कहा हमारी खुद की समझ में नहीं आता। क्यों हर जगह इन माडल्स को खडा कर दिया जाता है। वैसे उनके खडे होने का औचित्य क्या है? शायद वो खुद भी नहीं जानती।

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  2. anuradha jee,
    yathochit abhivaadan , chaliye shukra hai ki aapne bhee ye maanaa ki sachmuch aisaa hai. jab tak stree khud apne liye nahin ladegee tab tak kuchh nahin badalne waalaa.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला