शुक्रवार, 18 जनवरी 2008

ग्यारह हजार नौ सौ चालीस रुपये

पांडे जे पिछले काफी दिनों से इसी उधेड़बुन में लगे थे। उनके ऊपर यूं तो बहुत पहले से ही काफी दबाव था कि जब बांकी लोग भी खाने कमाने में लगे हुए हैं तो वे क्यों नहीं करते सब कुछ। उनकी पत्नी और बच्चे भी हमेशा इसी बात को लेकर नाराज़ रहते थे । बच्चों का मानना था कि पांडे जी दरअसल बिल्कुल डरपोक किस्म के आदमी थे और शायद इसी वज़ह से उनके पास वो सब कुछ नहीं था जो औरों के पास बल्कि ऐसों के पास था जो ओहदे और नौकरी में पांडे जी से कहीं कम थे। जबकि असलियत तो ये थी कि पांडे जी के जिद्भारी इमानदारी टाईप के वासुलों और आदर्शों के कारण दफ्तर में सब उनसे परेशान थे मगर मन ही मन डरते भी थे। खैर , पण्डे जी कर तक ये दबाव और कशमकश झेलते रहते अंततः थक हार कर वे भी धारा के साथ बहने को तैयार हो गए। अन्य सहयोगियों और सहकर्मियों को बताया गया। पण्डे जी को समझाया गया कि कैसे वे अपनी सीट को रातों रात रिलायंस के शेयरों की तरह अनमोल बना सकते हैं।

जैसे जैसे दिन बीतते जा रहे थे ,पण्डे जी की आंखों की चमक बढ़ती जा रही थी । उन्हें तो ये अंदाजा भी नहीं था कि ये ऊपर की कमाई इतनी ऊपर के होती है कि उनकी एक महीने कि तनख्वाह भी पीछे छूट जायेगी। बड़ी बेसब्री में पूरा महीना बीता और अब तो शाम का इन्तेज़ार करना भी भारी पड़ रहा था। शाम हुई तो पूरे महीने की ऊपरी कमाई का हिसाब लगाया गया , कुल "ग्यारह हजार नौ सौ चालीस रुपये ", बापो रे बाप इतने पैसे वो भी शूरुँत में ही। पण्डे जी ख़ुशी में झूमते घर पहुंचे । घर पर टाला पडा हुआ देखा तो हैरान हुए। पड़ोसी बदहवास भागता आया और बताया कि पण्डे जी आपका लड़का खेलते हुए गिर पड़ा और उसे काफी चोट आयी है आपकी पत्नी और आपका साला उसे लेकर अस्पताल गए हैं।

पण्डे जी की सारी ख़ुशी काफूर हो चुकी थी। अस्पताल पहुंचे तो पता चला कि चोट काफी गहरी लग गयी थी ,इलाज चल रहा मगर ख़तरे कि कोई बात नहीं है। पूरे एक हफ्ते तक पण्डे जी अस्पताल के चक्कर ही लगाते रहे मगर इश्वर की कृपा से उनका पुत्र ठीक हो गया। अस्पताल से छुट्टी लेने पहुंचे तो अस्पताल वालों ने बिल थमाया कु पैसे थे ," ग्यारह हजार नौ सौ चालीस रुपये ".

3 टिप्‍पणियां:

  1. किसी ने सच ही कहा है गलत तरीके से कमाई हुई दौलत फलती नही है।


    कहानी का अंत पसंद आया।

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  2. वे बहुत भाग्यवान थे कि लत लगने से पहले ही छूट गई । सजा बहुत मंहगी भी ना पड़ी ।
    घुघूती बासूती

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  3. haan ye sach hai maine ye kahaani ek jaankaar ke apne anubhav ke aadhaar par hee likhi thee.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला