सोमवार, 17 दिसंबर 2007

भाड़ mein जाये धर्म और जाति

मैं सोचता हूँ कि अब वो समय आ ही गया है जब धर्म और जाति जैसी चीजों को हमें अपने बीच से ख़त्म कर देना चाहिए। देखिए ना चारों तरफ आज उसकी वज़ह से सारी मुश्किलें आ रहे हैं। वैसे भी सोचता हूँ कि यार इस धर्म और जाति ने आख़िर क्या ऐसा अनोखा दे दिया आज तक जो यदि मैं इस धर्म और जाति का नहीं होता तो मुझे नहीं मिल पाता।

आज दुनिया में नज़र दौडा कर देखिए जितने भी लफड़े झगडे चल रहे हैं उनमें से ८० प्रतिशत का कारण या तो ये धर्म होगा या जाति होगी। अपने यहाँ गुजरात के चुनाव की बात हो या फिर बार बार आरक्षण के नाम पर होने वाली राजनीती और दंगा फसाद। इस्रैल-फिलिस्तीन का झगडा हो या हाल फिलहाल में चल रह मलासिया में हिन्दू लोगों के साथ होने वाला प्रकरण।

अपने यहाँ तो इस जाति और धर्म को सदियों से पीस पीस कर ऐसा लेप तैयार किया जाता रहा है कि जिसका लेप लगा कर हर कोई अपना मतलब निकालने में लगा हुआ है । चाहे किसी क्स्षेत्र कि राजनीति हो या पूरे देश की बात घुमा-फिरा कर वही धर्म जाति पर आ जाती है। मरा विषय ऐसा है कि आप जब भी इस पर बात करने कि कोशिश करेंगे इतने सारे हिमायती और दुश्मन एक साथ आपके आगे पीछे खडे नज़र आएंगे कि आपको लगेगा कि आपने जरूर इस युग कोई महत्वपूर्ण बात उठा दी है।

हाँ मगर सबसे बड़ी मुसीबत तो ये है कमबख्त इसकी शूरुआत कैसे और कहाँ से की जाये । कहने को मैं ए भी कह दिया है मगर अपने बेटे का सुर्नामे भी तो वही का वही रखा हुआ है । लेकिन सोचता हूँ कि चलो उनके समय तक जब वे भी ऐसा ही सोचेंगे तो कम से कम उन्हें ये दर तो नहीं रहेगा कि पिताश्री क्या सोचेंगे?

वैसे आप क्या सोचते हैं इस बारे में?

2 टिप्‍पणियां:

  1. धर्म जब तक व्यक्तिगत रहता है ठीक है, राजनीतिबाजों और धंधेबाजों ने इसे हमेशा इस्तेमाल किया और जनता बेवकूफ बन कटती मरती रही। जातियों ने सामाजिक शोषण का मार्ग प्रशस्त किया है। अब दोनों ही हमारी सामाजिक संस्कृति के आवश्यक अंग हैं। जब तक इन का स्थान लेने वाले नई वैकल्पिक व्यवस्थाऐं तैयार नहीं होती बदनाम हो कर भी इन्हें स्थान च्युत किया जाना संभव नहीं है। वर्तमान शासक वर्ग इन्हें सींच सींच कर मजबूत बनाए रखता है।

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  2. dwivedi jee,

    sahee kahaa aapne lekin ye sarkaar ye shaashan bhee to isee samaj ki den hai aur sach to ye hai ki aaj un logon ki sankhyaa kaafi kam ho gayee hai jo sachmuch is isthiti ko badalnaa chaahte hain. tippni ke liye dhanyavaad.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला