बुधवार, 12 दिसंबर 2007

कुछ बातें ब्लोग पर

इन दिनों ब्लोग लेखन पर काफी कुछ पढ़ने सुनने को मिल रहा है। ज़ाहिर है कि हर नई चीज़ पर आने वाली प्रतिक्रियाओं की तरह ब्लोग लेखन पर भी सबकी मिश्रित राय आ रही है। इसे जानने समझने वाले लोग इसकी ताक़त और प्रभाव को अभिव्यक्ती के क्षेत्र में एक नई क्रांति के रुप में देख व परख रहे हैं। उन्हें भरोसा है कि आने वाले समय में ब्लोग जगत , संचार, अभिव्यक्ति , साहित्य, व स्राज्नात्मक्ता का एक ऐसा संगम बन चुका होगा जिसकी उपेक्षा करना असंभव होगा। और तब शायद ब्लोग लिखने वालों को ये अफ़सोस भी नहीं होगा कि ब्लोगियों को कोई गंभीरता से नहीं लेटा और ना ही उन्हें अपने ब्लोग पर टिप्पिनियोंके आने का इंतज़ार तथा टिप्पणियों के ना मिलने पर दुःख होगा।



वहीं दुसरी तरफ ब्लोग को आलोचनात्मक दृष्टिकोण से देखने वालों के पास भी बहुत से कारण हैं। पहली शिक़ायत ये कि बहुत से लोगों विशेषकर बड़ी हस्तियों पर ये आरोप लगता है कि वे ब्लोग का इस्तेमाल किसी अन्य हितों या पुब्लिसिटी स्टंट के लिए कर रहे हैं , ऊपर से ये भी कि ब्लोग पर नाम सिर्फ उनका होता है ,विचार और लेखनी किसी और की। छित्थाकारी की दूसरी आलोचना ये की जाती है कि प्रसार और पाठक के लिहाज़ से इसकी पहुंच बहुत सीमित है। तीसरा ये कि ब्लोग पर आने वाली सामग्री बिखरी हुई, अनियंत्रित एवं निरर्थक होती है।

किन्तु इन आलोचनाओं के बावजूद कुछ बातें तो निश्चित हो चुकी हैं। ब्लोग और ब्लोग जगत की लोकप्रियता और दिनानुदिन बढ़ता जा रहा है। इसका प्रमाण ये है कि मीडिया के विभिन्न माध्यमों में इसकी निरंतर चर्चा होने लगी है। यदि बड़ी और नामी शाख्शियातें किसी भी रुप में और किसी भी उद्देश्य से ब्लोग्गिंग से जुड़ती हैं तो इससे अंततः ब्लोग जगत को यदि फायदा न हो तो नुकसान भी नहीं ही होगा। रही बात इस पर आने वाली सामग्री की तो ये तय कौन करेगा की कौन सी सामग्री स्तरीय है कौन सी बेकार स्वयम ब्लोगिए ही न। तो फिर जब उन्हें ही ये सब तय करना है तो व्यर्थ में इसके अन्यत्र चर्चा क्यों?

जो भी हो अन्तिम सत्य यही है कि छित्थाकारी एक विधा के रुप में स्थापित हो रही है और भविष्य में शासक्त संचार माध्यम के रुप में मान्यता पा ही लेगी.

5 टिप्‍पणियां:

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला