पिछले कुछ दिनों से कुछ बहुत सारे घटनाएं बेशक अलग अलग हो रही हैं मगर लगभग एक ही चरित्र और परिणाम के कारण उन्होने बहुत ज्यादा व्यथित और क्रोधित तो किया ही है साथ ही बहुत सी बातें सोचने पर मजबूर कर दिया है।
हाल ही में गोहाटी में एक प्रदर्शन के दौरान एक आदिवासी महिला को कुछ लोगों ने सरेआम नग्न करके पीटा और दौड़ाया।
इस देश कि प्रथम महिला आ ई पी एस किरण बेदी ने आखिरकार प्रशाशन की उपेक्षा से क्शुब्द हो कर अपने ईस्तेफे की पेशकश कर दी।
एक महिला लेखिका अपनी जान माल की सुरक्षा की खातिर दर दर भटक रही है, और उसको लेकर राजनीती तो की जा रही है मगर उसके लिए कोई आगे नहीं आ रहा।
अब ज़रा इन बातों पर भी गौर फरमाइये,
इस देश में अभी राष्ट्रपति एक महिला ही है।
इस देश को चलाने वाली (चाहे परोक्ष रुप में ही सही ) भी एक महिला ही है।
इस देश के बहुत से राज्यों में मायावती, शेइला दिक्सित, विज्यराजे सिंधिया, जयललिता ,आदि जैसी कद्दावर
राज्नेत्रियाँ हैं।
तो क्या समझा जाये इससे? कहाँ हैं महिला अधिकारों की समानता का दावा करने वाले?
कहाँ हैं वो लोग जो कहते नहीं थकते कि नहीं अब वो बात नहीं रही आज कि महिला ताक़तवर है आगे है।
सच तो ये है कि अब भी बहुत कुछ या कहूँ लगभग सब कुछ वैसा का वैसा ही है।
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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला