पिछले कुछ दिनों से लिख रह हूँ। चिटठा- कच्चा-पक्का जैसा भी है परोसे जा रह हूँ। क्यों लिख रह हूँ। पता नहीं। हाँ दो बातें तो तय हैं, पहली ये कि इसमें आनंद आ रहा है, दुसरी ये कि चिंता ये भी है कि इसकी सार्थकता कितनी और कहाँ तक है। खैर, इस पर तो बहस होती रहेगी।
एक नई बात करते हैं। आप चिट्ठा वाले , क्या चिट्ठी भी लिखते हैं। आप शायद हँसेंगे। आज मोबाइल,एस एम् एस ,ई-मेल ,के ज़माने में चिट्ठी, अजी छोडो छोडो ,गया ज़माना । और फिर चिट्ठी लिखी किसे जाये,। लिख भी दें तो जवाब कौन देता है?
केजिन नहीं यार, शायद ऐसा नहीं है , मैं लिखता हूँ, पोस्टकार्ड, अन्तेर्देशी ,लिफाफा, सब कुछ। कई ऐसों को भी जिन्हे आज तक देखा नहीं, कभी मिला नहीं, और हाँ उनका जवाब भी अता है। मगर यहाँ, शहर में ये बातें तो पुरानी और बेमानी हो चुकी हैं।
कभी पुराने पतों को एक बार अब पढ़कर देखना ,सुकून मिलेगा .
बहुत सही कहा आज हम सच में चिट्ठी लिखना भूळ गए हैं।...मैनें भी बहुत समय से किसी को चिट्ठी नही लिखी बस फोन पर बात कर तस्ल्ली कर लेते हैं।
जवाब देंहटाएंyadi aap bhi patra likhnaa shuru kar rahe hain to isse achhee baat mere liye aur kya ho saktee hai.
जवाब देंहटाएंya to apnaa pataa dein yaa mujhe likhen
jholtanma
l-79/b,dilshad garden
delhi.