शुक्रवार, 2 नवंबर 2007

सीरियलों का सार संग्रह

ये उन तमाम सीरियलों का सार संग्रह है जो पिछले कई सालों से मैं अपनी पत्नी श्री के साथ देखने को अभिशप्त हूँ। आइये एक एक कर के देखते हैं :-


कसौटी जिन्दगी की : अबे किसकी जिन्दगी की और काहे की कसौटी । एक प्रेरणा से सबको इतनी प्रेरणा मिल गयी है कि हो चाहे मुँह उठाये उससे शादी किये जा रहा है , बस एक हम ही रह गए हैं। शादी वो भी दो दो तीन तीन बार। क्या करें कमबख्त बुड्ढी भी तो नहीं होती । हाँ इस चक्कर में बेचारी का अपना घर टूट गया । थाना कचहरी तक हो गया महाराज। तब भी बेचारी कसुती पर खरी उतर ही नहीं रही है।


सास भी कभी बहू थी :- अमां जब थी तब थी अब तो सास रही नहीं और बहू नई आ गयी है और तो और जब पहली वाली तुलसी मोटाते मोटाते पूरा बरगद बन गयी (पहले वाला एपिसोड और आख़िरी वाला देख कर खुद जान लीजीये ) तो फिर से पतली तुलसी लानी पडी । तो फिर चक्कर क्या है , ना सास रही , ना बहू रही,। अरे यार, इनका खानदान कोइ मुग़ल सल्तनत से कम है क्या, पता नहीं किस तख्ते ताज के लिए लड़ते रहते हैं। ये थी नहीं हमेशा रहेगी चाहे कोई रहे ना रहे।

कहानी घर घर की :- पहले ये बताओ इस सीरियल में कोई दूसरा घर है कोई । एक घर है उसी में पूरा मोहल्ला बसाया हुआ है। फिर तो ऐसा ही होगा के मरा हुआ बन्दा दो दो साल के बाद waapas आ जाता है ।



bankee अगले में जारी ......

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