मंगलवार, 23 अक्तूबर 2007

pehla panna pehli baat

यूं तो ब्लोग के बारे में काफी पहले रेडियो पर कुछ कुछ सुना था मगर पिछले दिनों कादम्बिनी के ताज़ा अंक में पूरी जानकारी मिली । अब जब कि ये पता चल गया है कि इसमे मुझे बार बार पेन चलाने कि जरूरत नहीं पड़ेगी तो समझ गया कि यही है वह जगह जिसके लिए मैं पिछले दिनों मन ही मन सोच रह था।

सुना है कि इसका नाम है चिटठा , मगर किसी ने ये नहीं बतया कि कैसा चिटठा ,फिर सोचा कि जाहिर सी बात है कि चिटठा पका हुआ ही तो लिखना होगा वरना कच्चा चिटठा तो खबर बन जायेगी और एक्सक्लूसिव न्यूज़ के रुप में किसी खबरिया चैनल पर पहुंच जायेगी और ये ब्लॉगर तो रिपोर्टर बन जाएगा। या फिर शायद ऐसा होता हो कि आप कुछ भी अपने झोली से निकालो ,उछालो ,घुमा लो, फिरा लो और उदेल दो ब्लोग कि दुनिया में बाकी भाई बंधू खुद ही उसे घिस घिस कर पका देंगे । भाई, हर कोई कुछ ना कुछ कहीं ना कहीं पका ही तो रहा है । आप सोच रहे होंगे कि आख़िर मैं चाहता क्या हूँ। कुछ नहीं । बस आपको इतना बताना चाहता हूँ कि मैं भी आ गया हूँ आपके बीच अब तैयार रहे , मैं कभी भी कुछ भी , आपको परोस दूंगा पकने के लिए या पकने के लिए ये तो आप ही तय करना हाँ फिहाल इतना जरूर कहूँगा कि मेरे साथ आप गंभीर भी होंगे और खुश भी, कभी परेशान भी होंगे और हैरान भी मगर भी मैं तो लिखता रहूंगा कभी भी कुछ भी। लिखूंगा क्या सब कुछ कहानी , कविता , लेख , चिट्ठी , और ढेर सी वो बातें जो किसी को भाषण लगती हैं तो किसी को फालतू बात।
चलिए आज इतना ही

झोल्तानमा

1 टिप्पणी:

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला