रविवार, 26 दिसंबर 2021

ग्राम्य प्रकृति की अद्भुत तस्वीरें


भारत की आत्मा गाँव में ही बसती है।  आज से दशकों पहले ये बात महात्मा गाँधी ने तब कही थी जब वे अपनी पढ़ाई विदेश में करके भारत के स्वंतत्रता संघर्ष में हिन्दुस्तान के गाँव गाँव विचरे थे।  तब ही उन्हें ये एहसास हुआ था कि गाँव ही भारत की असली ताकत हैं , भारत के गाँव बदल गए तो देश बदल जाएगा।  मगर अफ़सोस की गाँधी के कांग्रेस और उनके कांग्रेसियों ने पचास सालों से अधिक तक शासन करने के बावजूद भी गाँव की वो सुध नहीं ली जिसकी अपेक्षा कभी खुद गाँधी जी ने की थी।  

ये नया भारत है और देखने वाले देख और समझ भी रहे हैं कि -ये देश असल में कभी भी गरीब नहीं था , शास्वत काल से ही पूरी दुनिया के अपनों बेगानों द्वारा लूटे नोचे जाने के बावजूद भी , जब जब किसी योग्य , कर्मठ , निष्ठावान प्रतिबद्ध नेतृत्व सम्भाला है भारत बार बार विश्व गुरु की तरह दुनिया के सामने उठ खड़ा हुआ है।  और यही सब एक बार फिर से देखने को मिल रहा है केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा भारत को एक नए भारत , एक नई शक्ति , एक विकास पुँज के रूप में संगठित , सामर्थ्यवान और संवर्धित करने के ध्येय पथ पर काम शुरू हुआ है , एक सुखद परिवर्तन सामने आया है।  

एक लम्बे समय के अंतराल के बाद , दीपावली और छठ पर्व पर बिहार के मधुबनी जिले स्थित अपने गाँव जाने का अवसर मिला और खुद पर यकीन नहीं हुआ कि , देश के सीमांत जिले पर स्थित मेरे गाँव में विकास की बयार इतने सुखद बदलाव ला चुकी है।  देखिये कुछ चुनिंदा तस्वीरें। ...........


पिताजी द्वारा निर्मित महादेव मंदिर और सूर्योदय 

मंदिर के साथ ही लगा हुआ पारिवारिक तालाब /पोखर 

मंदिर के साथ का बूढ़ा पीपल 

ताल तलैये 

धान की पैदावार से लहलहाते सोने से खेत 

जलकुम्भी 


फूल पत्तों वनस्पति 

महाराजाओं के किले और उनके अवशेष 







गाँव का मेला हाट बाजार 

और ये है गाँव गाँव कस्बे मोहल्ले की सड़कें 

चमचमाती सड़कें 

हर गाँव में आम के दर्जनों बाग़ बगीचे 




खूबसूरत और साफ़ सुथरे रेलवे स्टेशन 

चमचमाता जगमगाता रेलवे स्टेशन 




गाँव के भोज भात की तैयारी 

काली मंदिर 

पेठे /कुम्हर 


इस यात्रा के अनुभव , गाँव में अब निरंतर रहने वाली बिजली और उसके प्रभाव , मद्यनिषेध के बावजूद भी शराब और अन्य नशे का बढ़ता चलन , शिक्षित , ऊर्जा से भरपूर मगर बेरोजगार युवा वर्ग , सब पर धीरे धीरे शब्दों और तस्वीरों को साझा करूंगा।  


मंगलवार, 14 सितंबर 2021

हिंदी , हिन्दू , हिन्दुस्तान :उपेक्षित ,शोषित ,प्रताड़ित

 




वर्ष के 365 दिन और उस देश में एक दिवस , उस देश की राजभाषा , राष्ट्रभाषा को समर्पित -जी हाँ , आप बिलकुल ठीक समझ रहे हैं और आज सुबह से समाचार माध्यमों तथा सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर तरह तरह के बधाई और शुभकामना सन्देश फिर से हिन्दुस्तानियों को याद दिलाने के लिए आए हैं कि -आज यानि 14 सितम्बर को -भारत हिंदी दिवस के रूप में मनाता है। इस मनाने को ठीक वही मनाना है जैसे कोई रूठा हुआ हो और उसे मनाना है और हम पिछले सत्तर सालों से उसे मनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हिंदी है कि मानती नहीं।

हिंदी को भारतीय गणराज्य और कामकाज की आधिकारिक भाषा -यानि राजभाषा घोषित करने के विषय में नहीं पढ़ा तो सिर्फ इतना जान लीजिए कि , इसका तब इतना भारी विरोध किया गया था कि यदि हिंदी के पक्ष में वो एक मत अधिक नहीं दिया गया होता तो आज शायद भारत हिंदी नामक भाषा को राजभाषा का जामा पहना कर ये झुनझुना भी नहीं बजा रहा होता जो बजाया जा रहा है। इसे झुनझुना , टुनटुना बजाना न कहें तो क्या कहा जाए। संविधान में जो व्यवस्था सिर्फ शुरुआत के 10 साल के लिए एक विकल्प के रूप में रखी गई थी और संकल्प लिया गया था कि -अंग्रेजी के स्थान पर सामाज्य काम काज से लेकर , व्यवस्था शासन पुलिस सबकी आधिकारिक भाषा हिंदी ही होगी।

आज 70 वर्षों के बाद भी हिंदी की दशा और दिशा , सिर्फ उतनी ही संतोषजनक और ठीक है जितने से कि एक गरीब आदमी दिल को तसल्ली दे सके कि जो वो बोलेगा उसे कम से कम सड़क पर , गली , मोहल्ले परिवार समाज में सब समझ तो जाएंगे ही। लेकिन सिर्फ इन्हीं जगहों पर -बड़े दफ्तरों , होटलों , शिक्षा संस्थानों से लेकर व्यावसायिक प्रतिष्ठानों तक हिंदी की छाती पर बैठी अंग्रेजी लगातार मूँग दल कर करोड़ों हिन्दुस्तानियों को मानो मुँह चिढ़ाती रहती है कि , हूँह्ह। अपनी भाषा तक को बोली ,कही ,लिखी नहीं जाती चले हैं -हिंदी , हिन्दू , हिन्दुस्तान करने।

और देखा जाए तो हिंदी की हालत भी कुछ कुछ इस देश के हिन्दू की तरह ही हो गई है , जिसे न अदालतों में न्याय मिलता है न ही शासन राजनीति की तरफ से कोई मान्यता , दोनों ही इतने गए गुजरे होकर रह गए हैं कि सरे आम दोनों की लिंचिंग , नोच खसोट चलती रहती है और सब मूक दर्शक बने देख रहे हैं , देखते चले आ रहे हैं। हिंदी और हिन्दू , दोनों के नाम पर तरह तरह के करतब किए जा रहे हैं वो भी दशकों से , लोगों को एक सर्कस दिखाया जा रहा है और ये भी कि , समय के साथ दोनों को अपना मान और स्थान मिल जाएगा। लेकिन ये होगा कैसे , करेगा कौन , मानेगा कौन -इन सब पर सब चुप्पी साध लेते हैं।

अदालतें ,जिन्हें अपने ऊपर ये नाज़ है कि उन्हीं की न्याय व्यवस्था और सही गलत के संतुलन को बनाए रखने के कारण ही इस देश में सब कुछ ठीक है मगर अफ़सोस की बात ये है कि उन्हें भी अपने आदेशों , निर्देशों से लोगों के बीच ये विशवास बनाने के लिए -एक विदेशी भाषा यानि अंग्रेजी पर भी निर्भर रहना श्रेयस्कर लगता है तभी तो शीर्ष अदालत एक नहीं अनेकों बार – न्यायालीय काम काज की भाषा को राजभाषा हिंदी में किए जाने की याचिका को सिरे से ही ठुकरा चुका है।

पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार के आने के बाद से जरूर ही इस दिशा में बहुत से सकारात्मक रुख देखने को मिल रहे हैं जिनमे पहला है खुद बड़े राजनयिकों और मंत्री अधिकारियों द्वारा -राजभाषा हिंदी का प्रयोग। पहले की सरकारें और उनके करता धर्ता तो -अंग्रेजी में लिखे पुर्जे को पढ़ कर ही अपने आपको धन्य समझते रहे थे। इधर कुछ समय में मोबाइल , इंटरनेट में हिंदी लिखने पढ़ने की सुविधा ने भी अंतरजाल पर हिंदी को प्रसारित तो किया ही है।

लेकिन जिस देश में दुनिया की एक बहुत बड़ी आबादी को , अपनी बोलचाल की भाषा को मान्यता दिलाने , मान स्थान दिलाने के लिए एक विशेष दिन की जरूरत पड़ती रहेगी समझिए कि तब तक सब कुछ ठीक नहीं है।

मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

खुद को प्रकृति के करीब रखने की कोशिश होती है -बागवानी

 

पिछले दो वर्षों ने इंसान को मिले सबक में से एक सबसे बड़ा सबक ये भी रहा कि इस दुनिया में जो कुछ भी जैसा भी है वो असल में , वास्तव में बेहद खूबसूरत और पवित्र है।  कहीं कोई दोष या खोट नहीं।  और जिस जिस में ज़रा सी भी जो भी परेशानी , कठनाई , अच्छे बुरे बदलाव आए हैं उसका एक बड़ा कारण खुद इंसान ही रहा है।  

ग्राम से शहरों की और पलायनकारी नीति ने जहाँ गाँवों को अकाल मरने के लिए छोड़ा तो वहीँ पूरी आबादी शहरों में चीटीयों की बिल की तरह शहर और नगर बना कर रहने लगे।  प्रवृत्ति , लालच , उपभोग , सुविधा ने धीरे धीरे शहरों को इंसानों के रहने लायक जगह बना और बता दी।  मगर जब नींव की कृत्रिम हो तो आगे का कहना ही क्या ??

आज शहर  , गाँव से ही नहीं , मिट्टी , पौधे , पानी , हवा , वनस्पति , नदियाँ , पोखर , जंगल सबसे निरंतर दूर होते चले गए , लेकिन हाय रे इंसान।  पैसे दिल्ली और मुंबई में कमाता है करोड़ों मगर उसे खर्च करने के लिए बार बार भागता है पहाड़ों , नदियों , जंगलों के बीच और यही सबसे बड़ा सत्य है।  






शहरों में अब धीरे धीरे इन पेड़ पत्तों के प्रति लोगों का बढ़ता मोह अच्छा लगता है।  असल में जिस तरह से आज शहरों की दिनचर्या में बड़े से लेकर छोटे बच्चे तक पर मानसिक दबाव की काली छाया पड़ी हुई है उसे दूर करने में बागवानी जैसी आदत एक करिश्मा साबित होती है।  पौधे फूल फल सब दोस्त की तरह हो जाते हैं जिनके पास जाते है उनके एहसास मात्र से सुकून और सुख सा एहसास होता है।  कहते हैं पौधों की सेवा यानि बागवानी इंसान के तनाव को दूर करने का सबसे बेहतर ज़रिया होता है।  









एक बात और , सेना के जवानों में मृदुलता और संवेदनाओं को संजोए रखने के लिए और खूंखार अपराधियों तक का हृदयपरिवर्तन के लिए -बागवानी  को ही सर्वोत्तम कार्य के रूप में विश्व भर में मान्यता मिली हुई है।  सच ही है कि फूल पत्तों के रंग और खुशबू किसका मन नहीं बदल सकते।  


आप भी बागवानी शुरू करें और देखें की कितने खूबसूरत बदलाव आप अपने अंदर ही महसूर कर सकेंगे ?? तब तक मेरी छत पर बनी छोटी सी बगिया में खिलते मिलते नन्हें मेहमानों से मिलिए 








रविवार, 14 फ़रवरी 2021

प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार :राजस्थान के पर्यटक स्थल

 

बहुत बार ये बात मैं पहले भी कह चुका हूँ क़ी ठीक तलवे के बीचों बीच काला तिल देख कर माँ अक्सर कह दिया करती थी कि इस लड़के के पाँव में चक्कर लगे हैं।  कारण था मेरा लगातार घूमते रहना और सड़क , सफर जैसे उन दिनों किताब ,रेडियो ,चिट्ठी की तरह बिलकुल करीब के साथी थे मेरे।   कॉलेज के पूरे पाँच साल रोज़ तीस किलोमीटर सायकल से नाप डालने का हुनर ज़िंदगी भर काम आता रहा।  बहुत घूमा , घूमता हूँ और घूमना चाहता हूँ।  

पिछले कुछ सालों में मेरा रुख पश्चिम की तरफ रहा है और कमोबेश आठ यात्राएं मैंने की हैं पिछले दो सालों में ही।  कार ,बस , रेल , डबल डेकर रेल हर साधन और हर मार्ग से सिवा हवाई मार्ग के।  सफर की जब भी बात होती है तो मुझे सड़क की याद आ जाती है और शायद यही वजह रही है कि , बिना सड़क वाला सफर यानी हवाई सफर से अब तक बचता ही रहा हूँ।  

जयपुर , अलवर , जोधपुर , उदयपुर , माउंट आबू , चित्तौड़गढ़ ,जैसलमेर , फिलहाल इन तमाम शहरों को देखने समझने की एक कोशिश हो चुकी है।  जयपुर में अनुज का निवास है और उदयपुर में अनुजा का , इन दोनों शहरों में बहुत बार जाना हुआ और इसके बावजूद भी बार बार जाने का मन हो आता है।  

राजस्थान की धरती से इतिहास की किताबों में हमारा परिचय "राजों रजवाड़ों वाला , राजपूती शान वाला , राणा प्रताप वाला विशाल भूभाग वाला सा ही दिलाया जाता रहा है मगर मेरी यात्राओं में मैंने जाना कि अलौकिक धर्म क्षेत्र है पूरा राजस्थान। पग पग पर भगवान् स्वयं अनेक नामों रूपों में आज भी आपको महसूस होंगे।  हिन्दू , जैन ,शैव सबकी आराध्य और पवित्र भूमि।  

हर यात्रा की तरह जोधपुर यात्रा को भी विस्तार से लिखूंगा , लेकिन इस पोस्ट में मैं एक बहुत जरूरी विषय रखना चाह रहा हूँ वो ये कि , देश से लेकर विदेशी पर्यटकों तक की ख़्वाबों की नगरी , गुलाबी नगरी , झीलों का शहर , बने राजस्थान के शहरों के बेहद खूबसूरत और स्वच्छ होने के बावजूद कुछ पर्यटन स्थलों को छोड़ कर अन्य सब में सरकारी उदासीनता के चिन्ह साफ़ दिखाई देते हैं।  

जल महल -के पास पर्यटकों द्वारा झील की मछलियों को आटा , दाना आदि खिलाने वाले स्थान पर मंडराता शूकरों का झुंड  पास फैली हुई बेशुमार गंदगी।  मुझे लगता है प्रशासन को उस ओर जल्द से जल्द ध्यान देना चाहिए , हैरानी होती है कि आज जब मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक का उपयोग करके लोग इन सब चीज़ों को ठीक कर रहे हैं तो फिर अब तक कैसे ??? खैर इस समस्या को तुरंत दूर किया जाना चाहिए। 

 




जलमहल क्षेत्र , झील का पानी भी संभवतः नियमति रूप से साफ़ नहीं किया जाता , यह दूषित पानी से ही पता चल रहा था 




हालांकि पर्यटन स्थलों और यहां तक कि सड़कों के बीच पड़ने वाले गोल चौराहों की खूबसूरती आपका मन मोहे बिना नहीं रहती है , विशेषकर मेरे पसंदीदा शहर उदयपुर और माउंट आबू में।  बाजार में पॉलीथिन ,प्लास्टिक पन्नियों के उपयोग की पाबंदी के आदेश का जैसा पालन मैंने माउंट आबू में देखा वो शायद ही किसी अन्य शहर में संभव हो पाता  हो। 

उदयपुर शहर , बला का खूबसूरत शहर है , हर तरफ झीलें और खूबसूरत स्थानों की भरमार , जिस कोने में निकल जाइये बोगनवेलिया बाहें फैलाए आपको बुला रहे होते हैं।  उदयपुर शीशे की तरह शफ्फाक शहर है।  बहुत स्वच्छ सुथरा , मगर बावजूद इसके कुछ पर्यटन स्थलों पर सिर्फ एक छोटी सी कलात्मक पहल से उन तमाम पर्यटन स्थलों का वो अनुमप रूप निकल कर आ सकता है कि उन्हें देखने वालों को ये उम्र भर के सौगात से कम नहीं लगे। 

वैसे करिश्मा , जादू , वरदान जैसा ही है राजस्थान भारत के लिए , एक अनमोल रत्न सरीखा।  रेत के कण कण से सूरज की तपिश की तरह ललकता राष्ट्रवाद का प्रकाश और तेज।  राजमहलों की इतनी बड़ी दुनिया और किसी देश के किसी भी प्रान्त स्थान में मिलना कठिन है।  विराट अट्टालिकाएं , एक से बढ़ कर एक अभेद्य किले और उन किलों को मस्तक पर धारे हुए माँ भारती के वो सपूत , वो बांके जिन्होंने समय के आसमान पर अपनी वीरता और पराक्रम की कहानी लिख दी।  





किलों के सम्मोहन में एक बात कहनी बहुत जरूरी है वो ये कि , इनसे जुड़ी दास्तानें , गौरवमयी क्षण , उस इतिहास से परिचय कराने की जो ललक राज्य ,प्रशासन और स्थानीय स्तर पर होनी चाहिए उसमें कहीं न कहीं बहुत कुछ किए जाने की गुंजाइश तो है ही।  

राजस्थान रंगीला है , भरपूर ऊर्जा और प्रेम से लबरेज़।  ...चलिए अगली पोस्ट में चलेंगे जोधपुर के सफर पर।  सड़क मार्ग से। ..