रविवार, 28 अगस्त 2016

सर्पीले रास्ते , बर्फीली नदी , गर्मजल कुंड ...और मणिकरण की यात्रा


इस यात्रा  वृतांत  की  ये  अंतिम  कड़ी  है ,इससे पहले की कड़ियाँ आप यहाँ ,यहाँ और यहाँ पढ़ सकते हैं तो जैसा कि मैंने आपको पिछले पोस्ट में बताया था कि मनाली के क्लब हाउस  से  निकलने  के बाद  हमारा अगला और शायद इस यात्रा  का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव की ओर बढ़  चलना स्वाभाविक ही था | लेकिन उस समय  मुझे और मित्र अरविन्द जीको  हीपता   था  कि  अब  जिस  सफ़र  और  जिस  रास्ते  की  ओर हम बढ़ने वाले हैं वो देश हीनहीं  विश्व के कुछ बेहद दुर्गम और कठिन रास्तों में से एक है  | श्रीमती जी को खाई और साथ उफनती व्यास नदी की ओर न बिठा कर दूसरी  और  बिठाया  गया  | बच्चे  फोन  और  कैमरों  में  मस्त  होने  की  तैयारी  में  था और  मैंआदतन ..पहाड़ों ,वनस्पतियों ,रास्तों ,मिट्टीकोभांपताऔरपरखता चल रहा था |शायद इसलिए भीकि जाने फिर कभी जीवन में इन रास्तों पर दोबाराआने का कोइ बहाना मिले न मिले  |

रास्ते  वाकई  बहुत  जगह  पर  बहुत  ही  संकरे  और  डराने वाले  थे  ऐसे  ही एक मोड  पर  रुके  हुए  हम | यहाँ इन रास्तों  पर  सबसे  अधिक कठिन बात   होती  है  रिवर्स गियर  में  गाडी  का  संचालन ,देखिये एक बानगी आप  भी 

मनाली  से  मणिकरण  साहब  के  लिए  जाने  वाली  सड़क  का  एक  नज़ारा , चित्र कार  की  अगली  सीट  से  

खैर ऐसा नहीं था कि पूरे  रास्ते सिर्फ  डरने और  डराने  वाले  दृश्य  ही देखने को  मिले ,सड़क के बिलकुल साथ साथ  उफनती उछलती व्यास नदी बहुत से मोड़ों पर बहुत ही खूबसूरत और मनमोहक नज़ारे उत्पन्न कर रही थी |एक ख़ास क्षेत्रके आसपास तो कालेज के विद्यार्थियों के जाने कितने ही   समूह राफ्टिंग कैम्पिंगआदि के लिए डेरा जमाये बैठे थे  |हम आगे बढ़ते जा रहे थे  |




मनाली  से  आगे  बढ़ते  हुए  ही वनस्पति  में  भी बदलाव  महसूस  हुआ था | अब  फलदार पेड़  पौधों की बहार थी | जाने कितने ही तरह  के  कमाल के फल  फूल और पौधे भी  लद्द्दम लद्द ...हालांकि मालूम  चला  कि अभी इनके  पकने  में समय  है | सच कहूँ तो धरती पर अमृत बिखरा हुआ है और ज़हर तो उसमें हमने भरा है , बूँद बूँद करके यदि प्रकृति की अमरता का स्वाद चखना हो तो इन्ही वन आच्छादित प्रदेशों का विचरण करना चाहिए | बहरहाल हमारे लिए तो वहां दिखने मिलने वाले हर पौधे और उन पर लदे फदे फल सब तिलस्म सरीखे थे | आखें और मन जुराता जा रहा था



ये नीचे बब्बू गोशे के नन्हे नन्हे फल ..देखिये कितने खूबसूरत लग दिख रहे हैं | कार को बीच बीच में रोक कर मैं और मित्र अरविन्द जी , छू सहला कर परखते भी जा रहे थे ......



अब थोड़ी सी भूख सी लगने लगी थी लिहाजा सड़क के ठीक साथ बना हुआ हुआ एक छोटा सा रेस्तरां नुमा चाय की हट्टी देख गाडी को ब्रेक लगाया गया | हाथ मुंह धो कर और कुछ नाश्ते पानी के साथ चाय के लिए कह कर अपनी आदत के अनुसार मैं कौतूहलवश आसपास टहलने लगा | पास के ही मकान में ये चल रहा था | जी हाँ आलू बुखारों की पैकिंग का काम चल रहा था |

बात करते हुए पता चला  कि यहाँ से पैक करके अधिकांश माल को सीधे दिल्ली की आजाद पुर सब्जी मंडी के लिए भेजा जाता है , आजाद पुर मंडी कहते हैं कि एशिया की सबसे बड़ी मंडी है और दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारतीय राज्यों की फल व् सब्जी की लाईफ लाइन भी | तो बातचीत के दौरान मुझे जो सबसे रोचक बात  पता चली वो ये कि , यदि यहाँ के निकटतम बाज़ारों जैसे चंडीगढ़ या और कोइ भी तो उन बाज़ारों को भी आपूर्ति सीधे यहाँ से नहीं बल्कि दिल्ली की उसी आज़ादपुर सब्जी मंडी से ही की जाती है | इसके भी बड़े ही रोचक और वाजिब तर्क बताये इन्होंने | मैं काफी देर तक बैठ कर उनके काम काज और उन्हें समझने की कोशिश करता रहा |


आलूबुखारों की पैकिंग

और अपने काम में लगे हुए स्थानीय निवासी


खैर इन सबसे गुजरते हुए हम अब मणिकरण साहब गुरूद्वारे तीर्थ स्थल पहुँच चुके थे | गुरु मणिकरण साहब गुरूद्वारे का मुख्य प्रवेश द्वार और शायद एक अनोखी दुनिया का प्रवेश द्वार भी | व्यास नदी अपने पूरे उफान पर और जड़ जैसी ठंडी , वेग से उछलती हुई शोर मचाती हुई ...उसी के  ऊपर बना हुआ ये छोटा सा पुल जिसके उस पार जाने कौन सी जादू की दुनिया बसी हुई थी ..आइये दिखाते हैं आपको

गुरुद्वारा मणिकरण साहब का मुख्यद्वार और आते जाते श्रद्धालुजन



छुट्टियों के कारण स्थानीय और पड़ोसी लोगों की भरमार थी | पंजाब , हरियाणा , हिमाचल , दिल्ली और उससे भी दूर दूर से लोग इस पवित्र स्थल पर पहुंच रहे थे | मैं देश में स्थित बहुत सारे गुरुद्वारों का दर्शन कर चूका हूँ मगर इन सबमें मुझे मणिकरण साहब गुरुद्वारा समिति द्वारा संचालित व्यवस्था सबसे कमज़ोर लगी | पहले निर्णय किया गया कि मणिकरण साहब के प्रांगण में रात गुज़ार कर सुबह दर्शन के बाद वापसी शुरू की जायेगी | मगर थोड़ी ही देर में बच्चों की परेशानी को देखते हुए पुनः निर्णय किया गया कि अरविन्द जी से कहा जाए कि कोइ ठिकाना तलाशें | और शायद ये न होता तो हम उस पार की उस अनोखी दुनिया से वंचित ही रह जाते | गुरुद्वारा साहिब की भीतर से जाने वाली सुरंग के अन्दर से निकल कर उस पार की बस्ती में पहुँचते ही मन आनंदित हो गया |


ये एक अलग दुनिया  है , अलग अनुभव आपको धरती  के  भीतर  पल रहे आग पानी की  ताकत  का  एहसास कराता है ,जिस रस्ते से होकर मैं अपने इस आज रात के ठिकाने की  तरफ बढ़  रहा था उसके नीचे बह रही  नालियों  और  पानी  पहुंचाने  वाली  पाईप लाइनों में गंधक मिश्रित खौलता उबलता हुआ पानी और  उस सर्द मौसम में कई फीट ऊपर  उठता भाप का गुबार , कुल मिला कर कमाल का  अनुभव और नज़ारा  सामने  था 




व्यास नदी का  कल कल पानी  जब  गंधक की चट्टानों  से  टकराता  है  तो  गर्म भाप के  धुंए यूं दीखते  हैं 

चित्र को बड़ा करने  पर  गंधक से  गली हुई  पानी  की  पाईप को  देखा  जा  सकता  है 

तीव्र भाप 


आयुष , बुलबुल और श्रीमती जी 
गंधक की  गर्म चट्टानों के ऊपर  बसी  ये  धार्मिक सामाजिक दुनिया का अर्थ तंत्र भी  इन कारकों से जुडा हुआ  है  यहाँ  पर | भक्तों द्वारा स्थान स्थान पर बनाए  गए ऐसे  गर्म कुण्डों में चावल , आलू , आदि उबालने के अतिरिक्त वहां के स्थानीय  निवासियों द्वारा भी  इन गर्म पानी के कुंड का  प्रयोग खाना बनाने के अलावा और  भी अन्य कार्यों में  किया  जाता है  जिसमें से सबसे ख़ास  है  गर्म कुण्ड या  गंधक मिश्रित पानी में  स्नान | 

ऐसा  ही  गर्म कुंड जिसमें शायद  चावल पकाने  के लिए  रखा  गया  है 

गुरूद्वारे के प्रांगण में स्थित गर्म पानी का  सरोवर और उसमें स्नान करते श्रद्धालु जन |




इसके अलावा यहाँ के स्थानीय छोटे छोटे होटल व रिहायशी स्थानों पर  घरों के  अन्दर भी ऐसे  ही  कुण्ड स्नानघरों में बना  कर  गर्म पानी से स्नान का  आनंद लिया  जा  सकता  है  है | हमारे उस  छोटे  से  होटल  में  बना  हुआ  ऐसा ही एक स्नानागार





मणिकरण के छोटे से बाजार में आपको पहाडी जडी  बूटियाँ बहुतायत में  मिलती हैं बशर्ते कि आपको असली  की  पहचान हो 

कलकल करती  हुई  बर्फ से भी  ठंडी  व्यास  नदी 

सुबह सुबह का  मनोरम दृश्य