ग्राम यात्रा के दौरान रेल की खिडकी से खींची गई एक फ़ोटो |
अब इस देश को मिलने वाली रोज़ाना की खबरों में न्यायिक क्षेत्र से जुडी हुआ कोई समाचार , कोई फ़ैसला , कोई रोक न हो ऐसा संभव नहीं लगता । फ़िर इन दिनों तो मामला जीवन और मौत के बीच उठी बहस का है । मामला हत्या के बाद फ़ांसी ,माफ़ी और उम्रकैद और फ़िर माफ़ी के बीच इतना ट्रैंडिक हो गया कि सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी के सबसे नए नए अनाडी युवराज़ को ये तक कहना पडा कि इस देश में प्रधानमंत्री तक को न्याय नहीं मिल पाता है ।
उनका आशय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की साजिश में दोषी ठहराए और फ़ांसी की सज़ा पाए उन तीन मुजरिमों की दया याचिका के चौदर वर्षों तक लंबित रहने के कारण उनकी सज़ा में कमी करके उम्रकैद में बदलने से अपनी नाखुशी ज़ाहिर करने का था । हालांकि अगले ही दिन न्यायालय ने तमिलनाडु की प्रदेश सरकार द्वारा उन तीनों कैदियों की सज़ा उम्रकैद में परिवर्तित करते ही राज्य सरकार द्वारा उनकी रिहाई के लिए केंद्र की स्वीकृति पाने के प्रयास पर रोक भी लगा दिया है ।
किसी भी बहस से पहले यहां इस बात का उल्लेख करना ठीक होगा कि जिस तथाकथित विलंब के कारण न्यायालय को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए ऐसा निर्णय लेने पर विवश होना पडा वो विलंब तब हुआ जब केंद्र में लगातार खुद कांग्रेस व समर्थक पार्टियों की ही सरकार रही है । कहा जा रहा है कि ये फ़ाईल पूरे पांच वर्ष तक एक अधिकारी की दराज़ में ही पडी रही । इसी कडी में आज के समाचारों पर यकीन किया जाए तो बिहार में आज से बारह वर्ष पूर्व फ़ांसी की सज़ा पाने चार अपराधियों की दया याचिका आज तक राष्ट्रपति भवन पहुंची ही नहीं ।
किसी भी बहस से पहले यहां इस बात का उल्लेख करना ठीक होगा कि जिस तथाकथित विलंब के कारण न्यायालय को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए ऐसा निर्णय लेने पर विवश होना पडा वो विलंब तब हुआ जब केंद्र में लगातार खुद कांग्रेस व समर्थक पार्टियों की ही सरकार रही है । कहा जा रहा है कि ये फ़ाईल पूरे पांच वर्ष तक एक अधिकारी की दराज़ में ही पडी रही । इसी कडी में आज के समाचारों पर यकीन किया जाए तो बिहार में आज से बारह वर्ष पूर्व फ़ांसी की सज़ा पाने चार अपराधियों की दया याचिका आज तक राष्ट्रपति भवन पहुंची ही नहीं ।
क्या किसी सार्वजनिक/सरकारी अधिकारी (खुद महामहिम ही क्यों न हों )के दफ़्तर से जुडे उच्चाधिकारियों से अपने दायित्वों के पालन में ऐसी गंभीर गलतियों की अपेक्षा की जा सकती है । आखिरकार क्यों नहीं इस व्यवस्था को अब बदलने की जरूरत है और यदि सक्षम सरकारें और देश की सबसे शक्ति़शाली महिला अपने पुत्र को उसके पिता के हत्यारों को उनके अंज़ाम तक नहीं पहुंचा कर न्याय नहीं दिलवा पाई ..........तो यकीनन ही हवन करेंगे , हवन करेंगे , हवन करेंगे वाली स्थिति है ।
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येडिक परिदृश्य माने येडा मुख्यमंत्री के जाने बाद देश प्रदेश के राजनीतिक हलकों में जारी उठापटक । आज कोर्ट ने भी थोडा जा झटका क्या दिया कि सबने बालटी भर भर के कोसा है पार्टी को ,जबकि बिजली व्यवस्था पर सरकार द्वारा सब्सिडी दिए जाने के निर्णय पर स्थगनादेश पर मेरी प्रतिक्रिया ये रही कि ,यदि आप मुझसे इस खबर पर कुछ व्यक्त करने को कहें तो मेरी दो हैं ...
पहली ये कि बिल्कुल ठीक किहिस कोर्ट । ई फ़िलासफ़ी हमरे गले भी नहीं उतर रही थी कि खाली आंदोलन का हिस्सा बनने से आप शोंगड लगा के बिजली फ़ूंकने के अधिकारी हो जाते हैं जी , इहां हमारे जैसों का साला भविष्य निधि खाता तक करेंट खा रहा है बिल के मारे , नीचे इहे आपका माफ़ी वाला आज भी बिना मीटर के ही दौडाए उडाए रहता है अपना डीजे ...
दूसरी ये कि , यदि सपाट राय जानना चाहें तो , ये सरकार द्वारा बिजली बिल की माफ़ी क लिए सब्सिडी को एक तात्कालिक उपाय बनाने के निर्णय को इस वाद के पूर्ण फ़ैसले के आने तक रोक यानि स्टे लगा दी गई है , तो ये बिल्कुल स्वाभाविक न्यायिक प्रक्रिया है , अंतरिम फ़ैसलों को पूर्ण निर्णय मानने बताने की जल्दबाज़ी से बचा जाना चाहिए , लगता है चुनाव बहुत ही नज़दीक हैं .....
चलिए ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि ये येडा राजनीति का बदलता हुआ नया पेडा साबित होता है या येडा येडा कह कर अपनों द्वारा ही खदेडा जाने वाला है । जो भी बदलाव की इस कोशिश की विफ़लता और परिवर्तन के इस प्रयास का टूट कर बिखरना अंतत: राजनीति , समाज और व्यवस्था के लिए हानिकारक ही साबित होगा , ऐसा मुझे लगता है ।
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लोगलिक यानि सामाजिक परिदृश्य में ये है कि आज शाम को दफ़्तर से लौटते हुए एक साथ खडी दो रेहडियों के पास रुका । एक पर कन्हैया लाल साग बेच रहे थे और दूसरे पर देवीलाल टमाटर । हमें दोनों ही लेने थे सो वहां रुकना पडा । साग को काट छांट कर देने में जितना वक्त लगा उतने में उन दोनों से हुई बातचीत का लब्बलुआब कुछ यूं था ।
पुलिस से ज्यादा नगर निगम वाले उन्हें परेशान करते हैं , वे तो पूरी रेहडी ही उठा ले जाते हैं ,जबकि वे हर मौसम में यूं ही जीतोड मेहनत करके पेट पाल रहे हैं । पुरानी सरकार , नई वाली आकर गई सरकार के अलावा किसी ने भी कभी उनसे उनकी कठिनाइयों के लिए नहीं पूछा । यदि सरकार छोटे छोटे व्यावसायिक बिक्री केंद्रों /हाटों/स्टालों को बना कर उन्हें किराए पर रेहडी वालों को दे दे तो इससे स्थानीय लोगों को भी फ़ायदा होगा और रेहडी वालों को भी सरकार को तो होगा ही , क्यों नहीं कोई रेहडी वाला आप सब मिलकर तैयार करते जो आप सबकी दिक्कत सीधे सरकार तक पहुंचाए , राहुल गांधी कुलियों से मिले हैं सुना है ....................हां सुना था , लेकिन इसके बाद कुछ बदल जाएगा इसका विश्वास नहीं है ।
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किताबिक माहौल का तो पूछिए मत । राजधानी फ़िर किताब मेले से रौनकदार सी हो गई है और उतना ही रौनकदार हो गया है फ़ेसबुक और अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट्स , हर तरह किताबें ही किताबें , दोस्तों की किताबें , लेखकों की किताबें , कवियों की किताबें , ब्लॉगरों की किताबें , पाठकों की किताबें , और हम सब शब्दों , कथ्यों , अर्थों के दीवानों के लिए इससे सुखद और कुछ नहीं हो सकता कि हम अपने आस पास , शब्दों की जो दुनिया बुन रहे हैं वो किताबों की शक्लों में उनके पास भी पहुंच रही है जो इसे किताबों की शक्ल में ही पढना समझना चाह रहे हैं । उन सभी दोस्तों ,मित्रों , लेखकों , प्रकाशकों को असीम बधाई और शुभकामनाएं ....
परीक्षाओं का समय नज़दीक है , इंटरवेल लंबा भी हो सकता है , मगर मैं आता रहूंगा
पुलिस से ज्यादा नगर निगम वाले उन्हें परेशान करते हैं , वे तो पूरी रेहडी ही उठा ले जाते हैं ,जबकि वे हर मौसम में यूं ही जीतोड मेहनत करके पेट पाल रहे हैं । पुरानी सरकार , नई वाली आकर गई सरकार के अलावा किसी ने भी कभी उनसे उनकी कठिनाइयों के लिए नहीं पूछा । यदि सरकार छोटे छोटे व्यावसायिक बिक्री केंद्रों /हाटों/स्टालों को बना कर उन्हें किराए पर रेहडी वालों को दे दे तो इससे स्थानीय लोगों को भी फ़ायदा होगा और रेहडी वालों को भी सरकार को तो होगा ही , क्यों नहीं कोई रेहडी वाला आप सब मिलकर तैयार करते जो आप सबकी दिक्कत सीधे सरकार तक पहुंचाए , राहुल गांधी कुलियों से मिले हैं सुना है ....................हां सुना था , लेकिन इसके बाद कुछ बदल जाएगा इसका विश्वास नहीं है ।
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किताबिक माहौल का तो पूछिए मत । राजधानी फ़िर किताब मेले से रौनकदार सी हो गई है और उतना ही रौनकदार हो गया है फ़ेसबुक और अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट्स , हर तरह किताबें ही किताबें , दोस्तों की किताबें , लेखकों की किताबें , कवियों की किताबें , ब्लॉगरों की किताबें , पाठकों की किताबें , और हम सब शब्दों , कथ्यों , अर्थों के दीवानों के लिए इससे सुखद और कुछ नहीं हो सकता कि हम अपने आस पास , शब्दों की जो दुनिया बुन रहे हैं वो किताबों की शक्लों में उनके पास भी पहुंच रही है जो इसे किताबों की शक्ल में ही पढना समझना चाह रहे हैं । उन सभी दोस्तों ,मित्रों , लेखकों , प्रकाशकों को असीम बधाई और शुभकामनाएं ....
परीक्षाओं का समय नज़दीक है , इंटरवेल लंबा भी हो सकता है , मगर मैं आता रहूंगा