रविवार, 20 मई 2012

ब्लॉगिंग में हुआ बवाल , ब्लॉगिंग को मिली उछाल










पिछले कितने समय , अब इसका लेखा जोखा भी क्या रखना , बस ये समझिए कि कम से कम एक बरस से तो जरूर ही , ब्लॉगिंग एकदम मुइतमईन सी हो गई थी । फ़ेसबुक , गूगल प्लस और ट्विट्टर ने मानो ब्लॉगिंग की रफ़्तार को पहले पकड फ़िर जकड के रख लिया । गोया जो यहां से जरा सा उधर की ओर गया मानो जैसे वहीं का हो कर रहा है । दूसरों की क्या कहें कमोबेश हम खुद भी उसी गाडी में सवार हो गए थे अलबत्ता कारण शायद थोडे बहुत अलग अलग हों । 


लाख कोशिश हुई , वैसे ऐसी कोई घनघोर कोशिश हुई हो इसकी जानकारी कम से कम अपने पास तो कतई नहीं है , लेकिन हुई होती तो घनघोर ही हुई होती न कि ब्लॉगिंग को दोबारा पटरी पर लाया जाए , बल्कि ब्लॉगिंग को क्यों कहें , कहा जाए कि ब्लॉगरों को दोबारा पटरी पर लाया जाए । हद है आखिर इत्ती घनघोर मनहूसियत , न कोई विरोध , न झंडे , न झंडाबरदार , पोस्टों पर टिप्पणियां तो छोडिए , पोस्टों के ही लाले पड गए । फ़िर पोस्टें लिखी भी जाती रही हों तो पाठक पढें कैसे । तेज़ और लोकप्रिय एग्रीगेटर्स तो कब के कोमा में चले गए और धत तेरे कि धाकड लिक्खाड से लेकर धुरंधर टिप्पाड तक , पोज़िटिव निगेटिव के चटके से लेकर चिट्ठाजगत सक्रिय निष्क्रिय , हवाले मतवाले आदि तमाम टाईप के एक्सक्लुसिव खोजी खबरी भी इनके साथ ही कोमा में चले गए । हा! रे ब्लॉगिंग का दुर्भाग्य ।


लेकिन ऐसा नहीं है जी बिल्कुल भी नहीं , बीच बीच में कभी ब्लॉगर मिलन /बैठक / संगोष्ठी के बहाने तो कभी ईश्वर , धर्म , मज़हब के बहाने दंड पेलने वालों ने रौनक बनाए रखी । भर भर के बाल्टियां , ऐसी कोसमकोस शुरू कि समझ ही नहीं सकता कोई कि यदि धर्म , मज़हब पर बातें करने वाले , विमर्श करने वाले इतने सहिष्णु और गंभीर  लोग हैं तो फ़िर तो इनकी समझ की और दूसरों को समझाने की इनकी कोशिशों की दाद ही नहीं दाद खाज और खुजली भी देनी चाहिए । मगर न जी , मामला कुछ जमा नहीं । इक्का दुक्का बार बीच बीच में चल रहे एक आध एग्रीगेटर में से हमारीवाणी को भी उसी तरह निशाने पर लिया गया जिस तरह से पहले ही ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत का शिकार हमारे तीस मार खां ब्लॉगर मित्र लोग कर चुके थे , लेकिन सब नाकाफ़ी रहा रफ़्तार बढी नहीं कुल मिला कर ।

देश और प्रदेश में बेशक हवाएं अब गर्म हुई हों और लू के साथ साथ धूप की तपिश ने सबको हलकान करना शुरू कर दिया हो लेकिन भला हो ब्लॉगजगत के लिक्खाडों का कि यहां मामला गर्मा गर्मी का पहले ही शुरू हो गया । अब ये न ही पूछिएगा कि हाऊ हू बिकम बोल्ड , एंड किसने किसको क्या किया फ़िर टोल्ड और आखिरकार मामला वो भी पड ही गया कोल्ड , हां इत्ता जरूर रहा कि इस विषय ने पिछले कुछ दिनों तक बनाए रखा होल्ड । लेकिन एक बार फ़िर से फ़ार्मूला हिट्टम हिट रहा कि नकारात्मकता उत्प्रेरक का काम करती है ।

इस बारे में जब सोचता हूं तो मुझे एक दिलचस्प किस्सा याद आता है जो शायद मैं आपसे पहले भी बांट चुका हूं । एक स्कूल में बच्चों ने एक चैरिटी कार्यक्रम रखा , योजना बनी कि इस कार्यक्रम के बारे में लोगों को बताया जाए और फ़िर जब लोग इस कार्यक्रम को देखने आएं तो टिकट खरीद कर उसे देखें , टिकट से जो पैसे आएं उससे स्कूल के बच्चों के लिए खेलने और संगीत के लिए कुछ सामान खरीदा जाए । सारी तैयारियां हो गईं , तय हुआ कि लोगों को जानकारी पैम्फ़लैट के माध्यम से दी जाए । अगले दिन कुछ स्कूली बच्चे स्कूल के सामने ही सडक पर हाथों में पैम्फ़्लैट लेकर खडे हो । जो भी वहां से गुजरता , उसके हाथ में पकडा देते , लोग , बाइक स्कूटर कारों में सवार , सब उसे पकडते और आदत के अनुसार एक निगाह डाल कर वहीं फ़ेंक कर चलते बनते । बच्चे बडे दुखी और मायूस हो गए । इतने में एक युवक जो ये सब थोडी देर से देख रहा था उसने उन बच्चों से कुछ कहा । बच्चों ने सामने से आ रहे एक बाइक सवार को रोका और पैम्फ़लेट देने लेगे , उसने जैसे ही आगे हाथ बढाया , बच्चों ने पैम्फ़्लेट को दोनों हाथों से मोड तरोड दिया । बाइक सवार ने हैरान परेशान होते हुए उस पैम्फ़लेट को पकड लिया , और फ़िर अचानक उसे खोल कर सीधा करके पढने लगा । बच्चों के चेहरे पर मुस्कान आ गई । यानि फ़लसफ़ा ये कि मानव मन है ही ऐसा हमेशा उलटी बातें , उलटी चीज़ें ही ज्यादा आकर्षिंत करती हैं । फ़िर हम कौन से डायनासोर हैं , हम भी तो आखिर बाइक सवार ही हैं सो जैसे ही कागज़ मोड के पकडाया गया सब स्विच ऑन मोड में आ ही गए ।


वैसे ये फ़लसफ़ा एक लिहाज़ से ठीक भी है , जब कोई चर्चा न करे , जब कोई बात न करे तो खुद ही अपनी चर्चा करो , खुद ही अपनी बात करो । ब्लॉग जगत में आयोजन चाहे कैसा भी है , आयोजक चाहे कोई भी हो लेकिन जब तक उसका मीन मेख निकाल कर उसका पूरा पोस्टमार्टम न किया जाए तब तक आयोजन की पूर्णाहुति नहीं होती , पहले भी कभी नहीं हुई है । सो एक एक करके ऐसे वैसे सारे आयोजन के कर्ताधर्ताओं के कसबल ढीले पडते चले गए , जिनके बचे हुए हैं हमें पूरा यकीन है कि पोस्टों और टिप्पणियों की मिसाइलों से उनके मनोबल को भी नेस्तनाबूत कर ही दिया जाएगा । तो लब्बोलुआब ये कि रविंद्र प्रभात जी ने पिछले बार परिकल्पना सम्मान योजना और समारोह के खूबसूरत संचालन और उसके बाद हुए तमाम हंगामों के बावजूद हिम्मत न हारते हुए एक बार फ़िर से ब्लॉगरों को सम्मानित करने का मन बना लिया । जी हां सम्मानित को बोल्ड इसलिए किया है ताकि ठीक से बार बार ये ज़ेहन में आ सके कि सम्मानित ही करने की मंशा है । यहां एक साथ ही कई सारे प्रश्न उछले उछाले जा सकते हैं , उछल ही रहे हैं ।


सम्मानित ..क्यों भाई , हिंदी ब्लॉगरों को आखिर सम्मानित किया ही क्यों जा रहा है जब उन्हें अपमानित होने की आदत है तो ऐसी किरपा क्यों वो भी बिना दसबंद जमा किए कराए और फ़िर उससे भी जरूरी बात जब अपमानित करने कराने के लिए किसी को किसी की अनुमति सहमति की जरूरत नहीं होती तो फ़िर सम्मानित करने के लिए ही ये हिमाकत क्यों की जाए भला । वैसे भी देर सवेर कहा तो यही जाने वाला है ही कि हुंह्ह जिन्हें देने का मन था उन्हें दे ही दिया खामख्वाह इत्ता नाटक किया । लेकिन कमाल एक ये है कोई भी ये नहीं कहता कि फ़लां जी और चिल्लां जी को बिल्कुल भी कतई नहीं दिया जाना चाहिए ये सम्मान । अजी धेला भर नहीं जानते वे , कद्दू लिखते हैं और क्या खाक पता है उन्हें लेखन पठन के बारे में , मगर ना जी ये भला क्यों कहा जाए । इनको नहीं दिया जाए कहने से अच्छा है कि ये कहा जाए कि फ़िर इनको क्यों नहीं दिया गया , और जब इनको दिया गया तो उनको क्यों छोडा गया । किसी भी सूरत में आखिरकार सम्मान तो एक ब्लॉगर का ही होना है ।

परिकल्पना ही क्यों जी ..रविंद्र प्रभात ही क्यों ....लो ये कमाल है न । हां भई आखिरकार उन्हें ये हक दिया किसने कि वो यूं सरेआम सार्वजनिक रूप से सबको सम्मानित कर दें ..बताइए .तो ..सम्मानित । अजी जब ब्लॉगरों को घर दफ़्तर में कोई नहीं पूछता तो फ़िर ये इतने बडे हितैषी ..हैं कौन । ओहो ! जरूर परिकल्पना के पीछे किसी विदेशी शक्ति का हाथ है जो ब्लॉगिंग की स्थापित परंपरा यानि " ब्लॉगिंग का ब्लॉगिंग में ब्लॉगरों द्वारा ही अपमान " के बिल्कुल ही विपरीत है इसलिए कतई मंज़ूर नहीं किया जाएगा । फ़िर ये क्या बात हुई भला , हमारी हरकतें , हमारी बतकुच्चियां टिप्पणियां देख के कौन कह सकता है कि ये हिंदी ब्लॉगिंग  बालक अपने जीवन के एक दशक को देख चुका है , गोया अभी तो बचपन चढा भी नहीं है ठीक से घुटने के बल ठेमहुनिया मार के चल रहा है ऐसे में इतना भारी सम्मान । न कदापि नहीं । चलिए जो भी हो , इतना तो है ही कि ब्लॉगिंग अब अगल कुछ समय तक अपने पूरे उछाल पर रहेगी । वो कहते हैं न शेयर मार्केट उछाल वाली , जी जी जी बिल्कुल वैसी ही ।


सौ बात की एक बात देखने के दो ही नज़रिए होते हैं एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक और ज़ाहिर है कि सबके अपना अपना नज़रिया ही होता है ।हिंदी ब्लॉगर के रूप में मैंने पिछले छ: वर्षों में मैंने हमेशा ही हिंदी को ,हिंदी ब्लॉगिंग को , हिंदी ब्लॉगस को  और हिंदी ब्लॉगर्स को आगे बढने , बढाने , प्रोत्साहित करने , सम्मानित करने वाले हर प्रयास , हर छोटी बडी कोशिश का साथ दिया है और आगे भी दूंगा । फ़िलहाल तो ब्लॉगपोस्टों की बढी रफ़्तार और उस पर आई प्रतिक्रियाओं के दौर ने एक बहाना तो तत्काल दे ही दिया है भाई रविंद्र प्रभात जी की इस कोशिश का धन्यवाद अदा करने के लिए । हैप्पी ब्लॉगिंग एंड कीप ब्लॉगिंग ।

गुरुवार, 3 मई 2012

कोल्ड-बोल्ड ब्लॉगिंग और फ़ास्ट फ़्युरियस फ़ेसबुक






 

हिंदी अंतर्जाल का चेहरा , अपने पैदा होने से अब तक लगातार इतना तेज़ी से बदलता रहा है कि , कभी तो उसको साहित्य अपने निशाने पर लेता है ,ये कह कर कि इस पर जो कुछ भी उपलब्ध कराया जाता है वो स्तरहीन है , जबकि उन्हें भलीभांति मालूम होता है कि अब तो अंतर्जाल पर पूरा साहित्य इतिहास समग्र उपलब्धता की ओर अग्रसर है । कभी मीडिया , इसे अपने आपको न्यू मीडिया कहने कहलाने पर आडे हाथों लेता है । और सबसे कमाल की बात ये है कि इसके बावजूद भी सबको सबकी खबर रहती है और गाहे बेगाहे एक दूसरे की लाइन क्रॉस भी करते रहते हैं । इस बार मामला कुछ ज्यादा अलग इसलिए है क्योंकि इस बार तो एक नज़र सरकार ने भी अपनी टिका दी है और टेढी नज़र टिकाई है । लो जी जुम्मा जुम्मा अभी तो दस बरस भी नहीं हुए । अपने इतने से घंटों दिनों के सफ़र में हिंदी अंतर्जाल ने न सिर्फ़ माध्यम और मंच बदले बल्कि , अपना नज़रिया शैली और दिशा भी बदली । . 


बीच बीच में सेवा प्रदाता कंपनियों के परिवर्तन या ऐसे ही किसी कारणों के लोचा में फ़ंसकर झटके खाते इन मंचों के लिए विपदा पे आफ़त भी कुछ इस तरह की आई कि ,एक एक करके अलग अलग कई कारणों से एग्रीगेटर सेवा साइटें बंद हो गई या रुक गईं । दुनिया देश , फ़टाफ़ट जिंदगी की आदत को अपना रहा था , क्रिकेट भी टेस्ट मैच से लेकर ट्वेंटी ट्वेंटी मोड में पहुंच चुकी थी ऐसे में लोगों को त्वरित से भी तेज़ संवाद और संप्रेषण का हर नया उपाय ज्यादा लुभा रहा था । जिस ब्लॉगर ने अपनी मुफ़्त और अदभुत सेवा यानि ब्लॉग के माध्यम से विश्व अंतर्जाल पर धूम मचा दी और कभी बीबीसी समाचार सेवा की प्रमुख समाचार सूत्र के रूप में विख्यात हुई , उस सेवा को , ट्विट्टर , फ़ेसबुक और यू ट्यूब के बडे विस्तारित जाल ने कडी टक्कर दी । .
इन सब कारणों ने हिंदी ब्लॉगिंग में कोल्ड ब्लॉगिंग का दौर चला दिया । 


 कोल्ड क्या इसे तो चिल्ड ब्लॉगिंग कहिए , वर्तमान में लोकप्रिय एक एग्रीगेटर " हमारीवाणी " के पहले पन्ने की पोस्टें शाम तक भी एक पन्ने तक ही सीमित सी हो कर रह गई हों जैसे । सबके पास नियमित ब्लॉग नहीं लिखने , नहीं लिख पाने और यहां तक कि , नहीं पढ पाने और नहीं टिप्पणी करने या कर पाने के बहाने या कारण थे । लेकिन ट्विट्टर , फ़ेसबुक , प्लस ,और इन जैसे वैकल्पिक मंचों पर गहमागहमी चलती रही । इन सबके बावजूद एक कमाल की बात ये रही कि हिंदी ब्लॉगिंग में मज़हबी कटटरपंथ से जुडी पोस्टों ने गजब रफ़्तार पकड ली । अन्य भाषाओं का तो पता नहीं किंतु मेरा पिछले पांच वर्ष का अनुभव यही बताता है कि किसी भी विवाद के होते ही हिदी ब्लॉगिंग सक्रियता के अपने चरम मोड पर होती है । पिछ्ले दिनों सुना कि ऐसी ही एक पोस्ट से हिंदी ब्लॉगिग ने कोल्ड ब्लॉगिंग से बोल्ड ब्लॉगिंग की इमेज बना ली या बनी हुई घोषित कर करवा दी गई । अब ये तो इत्तेफ़ाक रहा कि एक संयोग भर कौन जाने लेकिन , बोल्ड ब्लॉगिंग ने आपनी अगली पारी के लिए आज के भारत "इंडिया टुडे " के मुख पृष्ठ को ही मुद्दा बना दिया । लेकिन इन सबका प्रभाव ये रहा कि बहुत दिनों बाद बहुत सी पोस्टों पर बहस और विमर्श की एक ऐसी महफ़िल जम गई कि समां बंध गया । .




अब रही बात ब्लॉगर मित्रों दोस्तों की तो , सब कहीं न कहीं लगे तो रहे , कोई प्रकाशन , तो कोई प्रकाशक से उलझे रहे , कई अपनी जिम्मेदारियों और पारिवारिक दायित्वों को संपन्न करने में लगे रहे , तो कई फ़ेसबुक और ट्विट्टर को धुनने में लगे रहे ,कईयों ने तो हार, प्रहार , लुहार तक पर पीएचडी कर डाली इस बीच , हम भी इन्हीं में से एक रहे । कहते हैं कि हिंदी ब्लॉगजगत में हमेशा ही गुटबाजी और समीकरणों की बात होती है , और कमाल ये है कि ये बदलते रहते हैं , खूब बदलते हैं । नाम ले ले के पोस्टें लिखने , एक दूसरे की टांग खींचने और और सभी भाषाई मर्यादाओं को तोड कर दंड पेलने की कवायद तो पहले से भी होती रही है , अलबत्ता इसकी रफ़्तार कम ज्यादा होती रही है । आने वाले दिनों में अंतर्जाल के बहुत सी बंदिशों और पाबंदियों के दायरे में आने की पूरी संभावना है ऐसे में यदि हिंदी अंतर्जाल पर लिखने पढने वाले किसी भी वजह से उदासीन होते हैं या अपनी उपस्थिति अपने विचारों से प्रशासन को कोई मौका देते हैं तो ये आत्मघाती कदम साबित होगा । सबसे जरूरी ये समझना है कि यहां विचारों का आना और बिल्कुल सीधे सीधे आना एक ताकत भी है और कमज़ोरी भी ।