रविवार, 14 सितंबर 2008
पिछले रोज़ घटी कुछ बातें , घटनाएं और दुर्घटनाएं.....
शुक्र है कि बाढ़ तो आयी :-
जी हाँ, मुझे अच्छी तरह मालूम है कि एपी सोच रहे होंगे कि आज कल जब चारों तरफ़ बाढ़ पीड़ित लोगों के लिए सहायता और दान आदि कि बातें चल रही हैं तो ऐसे में मैं ये कैसी उल्टी बात कर रहा हूँ, लेकिन यकीन मानिये मैं ये बात नहीं कह रहा , ये तो कह रहे हैं हमारे घोटालेबाज। आखिरकार भगवान् ने उनके सुन ली। न जाने कब से बेचारों ने मनौती मांग रखे थे कि अब तो कोई भी कैसे भी प्राकृतिक आपदा आ ही जाए। भगवान् ने छप्पड़ फाड़ के दे दिया। आपदा भी आयी तो इतनी बड़ी- बाढ़, उसपर सोने पे सुहागा ये कि बिहार में आयी। सरकार ने एक हज़ार करोड़ के राहत पैकेज के घोषणा की, बस समझ गए कि निविदाएं आमंत्रित हो गयी हैं। सभे घोटालेबाजों के चेहरे पर वो चमक है जो चमक पे कमीसन आने के बाद से बड़े सरकारी अधिकार के चेहरे पर भी न आ पाई। सभी क्षेत्र विशेष के विशेषज्ञ घोटालेबाज अपना होमवर्क कर रहे हैं। सबको ताकीद कर दी गए है कि पहले से किसी पचडे में फंसे रिश्तेदारों के नाम पर दोबारा कुछ न करें। इस बार नए मित्रों-सम्बन्धियों को मौका दें। राहत राशिः का वितरण, भोजन, कपड़े आदि का वितरण, चिकित्सा, पुनर्निर्माण अदि , अलग अलग हेड्स के तहत पूरे राहत राशिः की टिक्का- बोटी एक की जायेगी।
तो देश के हे मेधावी घोटालेबाजों, समय आ गया है , आपको आमंत्रण है। हाय मेरा तो कोई परिचित है ही नहीं ऐसा गुनी........
बम धमाके और हम :-
चलिए तो कुछ जेहादियों ने , अपने सीरीयल का अगला एपिसोड राजधाने दिल्ली में शूट किया। अजी क्यों न हो दिल्ली की तो बात ही कुछ और है। और सच कहें तो पिछले कुछ समय में तो इन बम धमकों पर इतनी बातें हो चुकी हो चुकी हैं कि अब तो लगता ही नहीं कि कुछ नया या अलग है , कहने और बताने को।
मगर मैं दो बातें मुझे जरूर कहनी हैं , वे जो ये कहते हैं कि लोग बड़े ही धैर्य वाले हैं और ये कि इन घटनाओं से दिल्ली या मुंबई या कोई और शहर का जज्बा कम नहीं होता। सब कुछ भूल कर सब पूरी जीवटता का परिचय देते हुए आगे बढ़ते हैं। बकवास है सब, जिसके ऊपर गुजरती है कभी उनकी आंखों में झांक कर देखो वे कुछ नहीं भूलते।
मैं जानता हूँ कि पुलिस सब जगह नहीं मौजूद रह सकती, सरकार भे इन पर पूरी तरह काबू नहीं पा सकते, मगर सरकार इतना तो जरूर कर सकती हैं कि जो लोग इसके लिए जिम्मेदार होते हैं उन्हें पकड में आने के बाद फांसी पर लटका दे। अफ़सोस सरकार ये नहीं कर पाती.......
ek gadhe kee kahanee :-
एक बार एक गधा एक बड़े से गड्ढे में गिर जाता है। धोबी देखता है कि गड्ढा काफी गहरा है और उमें से गधे को निकलना मुश्किल है फ़िर चूँकि वो बूढा भी हो चुका है इसलिए अच्छा है कि इस गड्ढे के ऊपर मिटटी दाल कर उसे बंद कर दिया जाए ताकि बूढा गधा शान्ति से मर सके। वो गड्ढे में मिटटी डालने लगता है। पहले तो गधे के समझ में कुछ नहीं आता। मगर जब उसे समझ में आता है तो वो चकित हो जाता है। फ़िर अचानक ही गधे को कुछ सूझता है , जैसे हे उसके ऊपर मिटटी डाली जाती है वो अपने आप को हिला कर उस मिटटी को झाड़ लेता और उस मिटटी पर चढ़ जाता। इस प्रकार धीरे धेरे गधा ऊपर आने लगा। उस धोबे के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहता जब वो देखता है कि गधा धीरे धीरे ऊपर आकार बाहर निकल जाता है। कहने का मतलब ये कि
जीवन में इस तरह सबके ऊपर बहुत सारी मुश्किलें मिटटी के तरह पड़ते हैं जिन्हें झाड़ते हुए और उनके ऊपर कदम रखते हुए जो आगे और ऊपर चढ़ता जाता है वो हर मुश्किल से बहार निकला जाता है। गधे तुझे सलाम.